tag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post7136482710407451265..comments2023-10-19T13:57:21.013+02:00Comments on मुझे शिकायत है. Mujhe Sikayaat Hay.: वो मुलतानी मिट्टी से तख्ती को पोतनाराज भाटिय़ाhttp://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-57473677270250267942010-08-15T15:19:53.396+02:002010-08-15T15:19:53.396+02:00बचपन का वो दौर तो हमें भी याद है भाटिया जी ..... क...बचपन का वो दौर तो हमें भी याद है भाटिया जी ..... कमाल के दिन थे वो भी ...<br /><br />वो तख़्ती पे लिख कर पहाड़ों को रटना<br />नही भूल पाता कभी वो भुलाएदिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-2612807354424517072010-08-06T11:02:12.063+02:002010-08-06T11:02:12.063+02:00New Rupee Symbol Design Competition and It's D...<a href="http://www.saveindianrupeesymbol.org" rel="nofollow">New Rupee Symbol Design Competition and It's Devastating Effect On Homegrown Design Talent</a> <br /><br /><a href="http://newindianrupeesymbol.blogspot.com/" rel="nofollow"><br />New Indian Rupee Symbol And Times Of India Media Hoax</a>Save Indian Rupee Symbolhttps://www.blogger.com/profile/10375098724279288338noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-2447922093007357832010-08-06T11:01:28.500+02:002010-08-06T11:01:28.500+02:00This comment has been removed by the author.Save Indian Rupee Symbolhttps://www.blogger.com/profile/10375098724279288338noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-63838005421320552852010-08-06T11:01:06.141+02:002010-08-06T11:01:06.141+02:00New Rupee Symbol Design Competition and It's D...<a href="http://www.saveindianrupeesymbol.org" rel="nofollow">New Rupee Symbol Design Competition and It's Devastating Effect On Homegrown Design Talent</a> <br /><br /><a href="http://newindianrupeesymbol.blogspot.com/" rel="nofollow"><br />New Indian Rupee Symbol And Times Of India Media Hoax</a>Save Indian Rupee Symbolhttps://www.blogger.com/profile/10375098724279288338noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-13748191700704808272010-08-06T07:17:04.742+02:002010-08-06T07:17:04.742+02:00चेलपार्क की बात ही अलग थी... और है भी .... मैं आज ...चेलपार्क की बात ही अलग थी... और है भी .... मैं आज भी चाइनीज़ पेन का इस्तेमाल करता हूँ और उसमें चेलपार्क इंक ही डालता हूँ....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-80137385024132842602010-08-06T03:20:54.311+02:002010-08-06T03:20:54.311+02:00वाह भाई अमित जी,अड़े भी महफ़िल सजा राक्खी सै।
आज तो ...वाह भाई अमित जी,अड़े भी महफ़िल सजा राक्खी सै।<br />आज तो सारां की पुराणी यादां के पन्ने खुलगे। <br />बहोत बढिया<br /><br />राम रामब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-73165217029225425952010-08-05T19:52:25.148+02:002010-08-05T19:52:25.148+02:00@ शास्त्री जी,
सही कह रहे हो। यह हम बुड्ढों के जमा...@ शास्त्री जी,<br />सही कह रहे हो। यह हम बुड्ढों के जमाने की भी बात है।<br />अमित जी, अपन को तो एक कविता याद आती है जिसे हम रोजाना तख्ती पर लिखते थे:<br />रण बीच चौकडी भर-भर कर,<br />चेतक बन गया निराला था।<br />राणा प्रताप के घोडे से, <br />पड गया हवा का पाला था॥नीरज मुसाफ़िरhttps://www.blogger.com/profile/10478684386833631758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-7590007285374642922010-08-05T18:30:57.763+02:002010-08-05T18:30:57.763+02:00अरे यह तो हम बुड्ढ़ों के जमाने की बात है!अरे यह तो हम बुड्ढ़ों के जमाने की बात है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-33805488043929709172010-08-05T17:57:19.541+02:002010-08-05T17:57:19.541+02:00बहुत सही लिखा आपने. हमने और भाटिया जी ने तो इस तख्...बहुत सही लिखा आपने. हमने और भाटिया जी ने तो इस तख्ती से कईयों के सर फ़ोडे थे. लठ्ठ से भी ज्यादा कारगर हथियार था. एक बार एक बडी क्लास के लडके से झगडा होगया. झगडे में सामने वाला ज्यादा ज्यादा तगडा था. भाटिया जी तख्ती लेके उस पर पिल पडे पर वो काबू में नही आरहा था. मैने अपना होल्डर बस्ते (स्कूल बैग कपडे वाला) से निकाला और उसकी निब की तरफ़ से उस छोरे के दे मारा...और आगे क्या हुआ होगा? ये बताने की नही सोचने की बात है...हमने तो इन सब चीजों का उपयोग हथियार के बतौर ही किया, बजाय लिखने पढने के.<br /><br />रामरामताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-76790954587896414802010-08-05T16:29:34.710+02:002010-08-05T16:29:34.710+02:00आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम , गुज़रा ज़माना बचपन का...आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम , गुज़रा ज़माना बचपन का ---।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-18755817747264545732010-08-05T16:10:57.212+02:002010-08-05T16:10:57.212+02:00अमित भाई बहुत सुंदर यादे याद दिला दी आप ने. लेकिन ...अमित भाई बहुत सुंदर यादे याद दिला दी आप ने. लेकिन आप तो हम से काफ़ी बाद आये ओर यादे सारी हमारे वाली ही है, तख्ती का एक ओर भी लाभ था... कभी कभी उस से धुनाई भी करते ओर करवाते थे, आज तो कई बार पढी आप की पोस्ट. धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-64796811231623793172010-08-05T11:07:24.293+02:002010-08-05T11:07:24.293+02:00आपके जैसा ही बचपन लगभग सभी लोगो का बीता होगा | एक ...आपके जैसा ही बचपन लगभग सभी लोगो का बीता होगा | एक फर्क जरूर आया है की आज कल स्याही के पेन बाजार से गायब हो गए है और अगर मिल भी जाते है तो कभी उनकी निब नहीं मिलती तो कभी स्याही नहीं मिलती है | बचपन में यह पता नहीं चल पाता था की पेन लीक क्यों करता है आज पता चल पाया तो हमारे पास लिखने के लिए ना कागज़ है और न ही पेन है |naresh singhhttps://www.blogger.com/profile/16460492291809743569noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-45022475777384642462010-08-05T09:41:56.814+02:002010-08-05T09:41:56.814+02:00इस तरह की पोस्टों से बचपन तो याद आना ही है .. हमल...इस तरह की पोस्टों से बचपन तो याद आना ही है .. हमलोग चाचाजी के द्वारा प्रयोग किए घर में पडे पुराने खराब पेनों को उठाते .. उसके पार्ट पुर्जे अलग अलग कर गरम पानी में खौलाकर धोते .. बाजार से दर्जन के हिसाब से अलग से निब खरीदते .. और सबको अच्छी तरह फिट करके बहुत सारे पेन बनाते .. पूरे आंगन में बहुत भाई बहन थे .. सब को वे पेन बांटे जाते .. भले ही प्रयोग करने के वक्त उससे स्याही लिक करती .. ऊंगली और कागज गंदे हो जाते .. पर हमलोग इसको फेक नहीं पाते थे!!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3938724245035517728.post-72405661111224823382010-08-05T08:42:22.204+02:002010-08-05T08:42:22.204+02:00अब तो नेट का जमान है, सीधे ऑललाइन लिखिए और सुरक्षि...<b><br />अब तो नेट का जमान है, सीधे ऑललाइन लिखिए और सुरक्षित रखने का कोई झंझट ही नहीं।<br /></b><br />…………..<br /><a href="http://ss.samwaad.com/" rel="nofollow">किस तरह अश्लील है कविता...</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com