7/9/10
एक लेख सतीश सक्सेना जी के नाम से
सतीश जी आप का यह लेख मैने कल पढा""शोर प्रदूषण और यूरोप - सतीश सक्सेना"" उस समय सिर्फ़ होंठॊ पर एक हल्की सी मुस्कान आई,आप ने शायद इसे हल्के से लिया ओर अपनी गलती मान कर सब चुप भी हो गये, लेकिन यह सही नही हुआ, वो महिला चाहे कितनी भी उम्र की हो उसे बोलने का ढंग बिलकुल भी नही था, ओर मेने इस मै नसल वाद की बद्वू महसुस की है यानि रेशिसम, अगर किसी को भी ऊंची आवाज मै बात करने से रोकना हो तो यहां बहुत सभ्य तरीके से कहा जाता है कि "" माफ़ी चाहता हुं/ चाहती हूं, कृप्या आप थोडा धीरे बोले, आप के तेज बोलने से मेरा ध्यान बंटता है, साथ मे मै आप का धन्यवाद करता हुं/ या करती हुं, फ़िर सामने वाला अपने आप ही धीमे बोलना शुरु कर देता है, लेकिन जिस तरह से आप ने लिखा कि यह महिला बहुत गुस्से ओर बतमीजी से बोली वो तो हद थी.
वेसे भी जब भी कोई ग्रुप मै लोग जाते है चाहे किसी भी देश के हो खुब बाते करते है, खुब शोर होता है, ओर साथ वाले बुरा नही मानते, अगर आप के साथ कोई भारतिया वहां का रहने वाला होता तो जरुर उस महिला पर केस कर देता, वर्ना उसे अच्छी तरह से डांट जरुर पिला देता....
अब सुनिये एक केस जो मेरे संग हुआ था...एक बार हम परिवार के संग स्विस ऎयर से भारत गये, मुनिख से जुरिख, फ़िर जुरिख से दिल्ली, आती बार हमे जुरिख मै एक घंटा रुकना पडा, जब हम वेटिंग रुम मै बेठे तो मेरी बीबी ने मेरा ध्यान बंटाया कि देखॊ वो आदमी सिर्फ़ काले ओर हम जेसे लोगो को ही चेक कर रहा है, मेने उसे ध्यान से देखा तो मुझे बहुत बुरा लगा, सच मै वो सिर्फ़ काले ओर भुरे लोगो को ही चेक कर रहा था, कुछ समय बाद मेरे पास ओर बहुत अकड से बोला पास पोर्ट ? मैने उसे कहा कि आप जर्मन मै मेरे साथ बाते करे, तो बिना कृप्या या श्रीमान लागये बोला कि अपना पास पोर्ट दिखाओ? मैने कहा क्यो? तो बोला कि मै चेक करना चहाता हुं... मेने पुछा लेकिन तुम हो कोन ? तुम्हे क्या अधिकार है ओर किस ने यह अधिकार तुम्हे दिया है???
अब उस आदमी को बहुत गुस्सा आया ओर वोला मै यहां पुलिस का अधिकारी हुं, तो मैने उसे कहा पहले अपनी जेब पर अपना नाम वगेरा का बिल्ला लगायो फ़िर मुझे अपना पहचान पत्र दिखाओ, उस के बाद मेरे से मेरा पास पोर्ट मांगो.. अब उस आदमी का चेहरा देखने लायक था, बोला थोडी देर रुको मै फ़िर आता हुं,ओर मै हंस पडा, करीब दस मिंट के बाद मेरे पास आया तो उस की जेब पर उस के नाम का बिल्ला मोजूद था, ओर मुझे अपना परिचाय पत्र दिखा कर बोला श्री मान जी यह मेरा परिचय पत्र है, मेने उस का परिचय पत्र ले कर ध्यान से देखा ओर अपना ओर अपने परिवार के पास पोर्ट उसे पकडा दिये, साथ मै मैने उसे कहा कि तुम सिर्फ़ मेरे जेसे लोगो के पास पोर्ट ही क्यो चेक कर रहे हो?? तो उस ने मेरे पास पोर्ट बिना चेक किये मुझे लोटा दिये ओर मुस्कुरा कर चला गया.... क्या यह राशिसम नही, नसल भेद भाव नही, ओर आप के संग भी यही हुआ, वर्ना कही दस लोग जान पहचान के बेठे गे तो शोर तो होगा ही , बस हम लोग ऊंचा बोलते है, इस लिये किसी को दिक्क्त होगी तो वो बहुत प्यार से कहे गा कि कृप्या धीरे बोले, बतमीजी ओर जहिलियत से नही कहेगा, उस ऒरत कि किस्मत अच्छी थी उसे कोई पुराना भारतिया/ विदेशी नही मिला, वर्ना वही उस की इज्जत को मिट्टी मै मिला देता, हम लोग यहां रहते है इन के कानुन का पालन भी करते है, लेकिन इन से बेकार मै दब कर नही रहते, जबाब देते है इन्हे
वेसे भी जब भी कोई ग्रुप मै लोग जाते है चाहे किसी भी देश के हो खुब बाते करते है, खुब शोर होता है, ओर साथ वाले बुरा नही मानते, अगर आप के साथ कोई भारतिया वहां का रहने वाला होता तो जरुर उस महिला पर केस कर देता, वर्ना उसे अच्छी तरह से डांट जरुर पिला देता....
अब सुनिये एक केस जो मेरे संग हुआ था...एक बार हम परिवार के संग स्विस ऎयर से भारत गये, मुनिख से जुरिख, फ़िर जुरिख से दिल्ली, आती बार हमे जुरिख मै एक घंटा रुकना पडा, जब हम वेटिंग रुम मै बेठे तो मेरी बीबी ने मेरा ध्यान बंटाया कि देखॊ वो आदमी सिर्फ़ काले ओर हम जेसे लोगो को ही चेक कर रहा है, मेने उसे ध्यान से देखा तो मुझे बहुत बुरा लगा, सच मै वो सिर्फ़ काले ओर भुरे लोगो को ही चेक कर रहा था, कुछ समय बाद मेरे पास ओर बहुत अकड से बोला पास पोर्ट ? मैने उसे कहा कि आप जर्मन मै मेरे साथ बाते करे, तो बिना कृप्या या श्रीमान लागये बोला कि अपना पास पोर्ट दिखाओ? मैने कहा क्यो? तो बोला कि मै चेक करना चहाता हुं... मेने पुछा लेकिन तुम हो कोन ? तुम्हे क्या अधिकार है ओर किस ने यह अधिकार तुम्हे दिया है???
अब उस आदमी को बहुत गुस्सा आया ओर वोला मै यहां पुलिस का अधिकारी हुं, तो मैने उसे कहा पहले अपनी जेब पर अपना नाम वगेरा का बिल्ला लगायो फ़िर मुझे अपना पहचान पत्र दिखाओ, उस के बाद मेरे से मेरा पास पोर्ट मांगो.. अब उस आदमी का चेहरा देखने लायक था, बोला थोडी देर रुको मै फ़िर आता हुं,ओर मै हंस पडा, करीब दस मिंट के बाद मेरे पास आया तो उस की जेब पर उस के नाम का बिल्ला मोजूद था, ओर मुझे अपना परिचाय पत्र दिखा कर बोला श्री मान जी यह मेरा परिचय पत्र है, मेने उस का परिचय पत्र ले कर ध्यान से देखा ओर अपना ओर अपने परिवार के पास पोर्ट उसे पकडा दिये, साथ मै मैने उसे कहा कि तुम सिर्फ़ मेरे जेसे लोगो के पास पोर्ट ही क्यो चेक कर रहे हो?? तो उस ने मेरे पास पोर्ट बिना चेक किये मुझे लोटा दिये ओर मुस्कुरा कर चला गया.... क्या यह राशिसम नही, नसल भेद भाव नही, ओर आप के संग भी यही हुआ, वर्ना कही दस लोग जान पहचान के बेठे गे तो शोर तो होगा ही , बस हम लोग ऊंचा बोलते है, इस लिये किसी को दिक्क्त होगी तो वो बहुत प्यार से कहे गा कि कृप्या धीरे बोले, बतमीजी ओर जहिलियत से नही कहेगा, उस ऒरत कि किस्मत अच्छी थी उसे कोई पुराना भारतिया/ विदेशी नही मिला, वर्ना वही उस की इज्जत को मिट्टी मै मिला देता, हम लोग यहां रहते है इन के कानुन का पालन भी करते है, लेकिन इन से बेकार मै दब कर नही रहते, जबाब देते है इन्हे
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उलझन
25 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
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बहुत सही भाटिया जी,
ReplyDeleteऐसा ही होना चाहिये।
बहुत सही भाटिया जी,
ReplyDeleteऐसा ही होना चाहिये।
बहुत खूब जवाब तो देना ही चाहिये
ReplyDeleteवैसे चित्र में गाली देती महिला कौन हैं?
एक पांच सितारा होटल के लाउंज में एक अंग्रेजों का लौंडों का ग्रुप सिगरेट के कशें मार रहा था ..मैंने जाकर कहा की पब्लिक प्लेस में सिगरेट पीना भारत में कानूनन जुर्म है -सबने तुरंत सिगरेट बुझाई और माफी मांगी !
ReplyDeleteआपने ठीक किया!
यह भी ठीक है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बहुत सही भाटिया जी ..आपके विचारों से सहमत. अगर उस महिला के सामने दमोहनाका जबलपुर की एक भारतीय विशुद्ध मर्दाना औरत खडी कर दी जाती तो उस महिला की घिग्घी बंद हो जाती .... जब उसका मुंह खुल रहा था तो जबाब भी तो उसे मिलना चाहिए ..जी...
ReplyDeleteसही है भाटिया जी.. मै भी ट्रेन में जब तक टी टी वर्दी में परिचय पत्र के साथ नहीं होता... टिकट नहीं दिखाता...
ReplyDelete@मिश्रा जी.. मुझे नहीं पता की आपका "अंग्रेजों का लौंडों का ग्रुप" से पूर्व परिचय था या नहीं.. पर उन्होंने माफी मांगी सिगरेट बुजाई.. लगता है की वो विनम्र थे.. कल्पना कीजिये वो भारतीय होते..थोड़ी हैसियत वाले.. पता नहीं कैसा जबाब देते... अनजान लोगो को सिगरेट पीने के लिए ऐसा संबोधन क्या हम रेसिस्ट नहीं है?
बहुत सही!
ReplyDeleteबहुत खूब!
आपसे सहमत हूँ राज भाई !
ReplyDeleteआपने सही कहा भाटिया जी । इसमें रंग भेद नज़र आता है । लेकिन शायद पहली बार बाहर जाने वाले को इतना नहीं पता होता । इसलिए चुप रह जाना पड़ा होगा । वैसे ये गोरे , भेद भाव तो करते हैं । और इसका विरोध करना चाहिए ।
ReplyDelete
ReplyDeleteजिसने स्वयँ अपने आत्मसमान की रक्षा नहीं की, उसका सम्मान दुनिया की कोई जाति या नस्ल क्योंकर करे ?
अपना विरोध तो अवश्य ही दर्ज़ कराना चाहिये ।
निडर से तो सभी डरते हैं, ज़नाब !
aap se poorna sahmat......
ReplyDeleteaapne sahi kaha bhai saheb !
हम भी आपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हैं भाटिया जी....
ReplyDeleteएकदम खरी बात.
ReplyDeleteनिज आत्मसम्मान से बढकर कुछ भी नहीं. जिसने आत्म सम्मान खो दिया तो समझिए उसने सबकुछ खो दिया.
दोनों ही बातें होती हैं. आपका अवलोकन भी सही है और उसके अनुकूल आपका व्यवहार भी. रेसिज्म भारत के बाहर भी मौजूद है और भीतर भी.
ReplyDeleteइंसान को इंसान से भेद करने के लिए कुछ न कुछ बहाना चाहिए ..
ReplyDeleteयह दुनिया की हर सभ्यता पर लागू होता है ...!
आपका अवलोकन एकदम सही है
ReplyDeleteसटीक लेख.
मैं आपसे सहमत हूँ भाई जी ,
ReplyDeleteउन महिला की उम्र और स्वयं की जोर जोर से बोलने की आदत के कारण शायद उनका या हमारा ध्यान इस तरफ( रंगभेद ) नहीं गया !
आपकी दिया पासपोर्ट वाला उदाहरण बहुत अच्छा लगा और सही कदम था !
मगर आप इस बात से सहमत होंगे कि पब्लिक प्लेस में किसी एक व्यक्ति के जोर जोर से बोलने में आपका ध्यान बांटता है , और चिडचिडाहट आ ही जाती है यह कहानी अपने देश में होती तो भी वह महिला गलत नहीं थी !
भाटिया जी मै है दम वन्देमातरम
ReplyDeleteअपने अधिकारों के प्रति आपकी सजगता का पता चलता हैं इस पोस्ट को पढ़ कर । अच्छा हैं कि आप अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं । लेकिन आप की और सतीश की स्थिति मे बहुत अंतर हैं और सतीश के मित्र ने जो किया सही किया । एक व्यक्ति जो टूरिस्ट वीसा पर जाता हैं उसको बिना वजेह कहीं भी कोई एसा काम नहीं करना चाहिये की वहाँ का स्थानिये निवासी उसकी शिकायत वहाँ के अधिकारी से करे । इस से deportion का खतरा रहता हैं और कभी कभी मुग्गिंग भी हो जाती हैं ।
ReplyDeleteआप क्युकी वहा सालो से हैं इस लिये आप के अधिकारों दूसरे हैं । एक भ्रमित करने वाली पोस्ट हैं ये ।
इसके साथ साथ ये भी कहना चाहती हूँ की आप ने हर उस ब्लॉग पर जहान नारी अधिकारों की बात की जाती हैं उन ब्लॉगर के प्रति असहिष्णु कमेन्ट दिये हैं । अपने अधिकारों के प्रति आप अगर सजग हैं तो उन दुसरो को जो अपने अधिकारों के प्रति सतर्क हैं उनका सम्मान करना भी आप को आना चाहिये ।
तस्लीम के ब्लॉग पर आप का नया कमेन्ट भी यही कहता हैं की यौन शोषण के खिलाफ बनया जा रहा सख्त कानून बकवास हैं जबकि जहाँ आप रहते हैं वहाँ यौन शोषण के खिलाफ बहुत सख्ती हैं और विक्टिम को आर्थिक मुआवजे का प्रावधान हैं ।
अगर जिस देश मे आप गए हैं वहाँ के कानून आप को अच्छे लगते हैं तो उनको भारत मे आने के आप क्यूँ खिलाफ हैं । सोच बदले महिला सश्क्तिकर्ण के खिलाफ और उस पर लिखने वालो के खिलाफ
एक अच्छी पोस्ट ..टिप्पणियों ने इसे और भी अधिक सार्थक बना दिया ।
ReplyDeleteरचना जी...पता नही आप किस बात को किस ढंग से लेती है,**यौन शोषण के खिलाफ बनया जा रहा सख्त कानून बकवास** अरे बाबा मैने यह कहा है कि यह बाते बाद कि है पहले हमारी सरकार को उन बातो की ओर ध्यान देना चाहिये जो बहुत जरुरी है, बाढ हर साल आती है, लोग भुखे मर रहे है बिना भोजन के, पानी के इये तरस रहे है, ना पानी है ना बिजली ना खाने को ओर हम नये से नये कानून बनाने के लिये बेकार मै बहस करते है, ओर अगर ऎसा होना हि चाहिये तो हमारी पुलिस को चुस्त होना चाहिये, ऎसा कर्म करने वाले को सजा सख्त से सख्त मिलनी चाहिये, सिर्फ़ बेकार ओर बकवास के कानून बना देने से कुछ नही होगा, बिना कानूण के भी यह सब हो सकता है, क्यो जनता को भुल भुलेया मै डाल कर उन का ध्यान दुसरी तरफ़ लगते है.
ReplyDeleteजब भी हम किसी भी देश मै टूरिस्ट वीजे पर जाते है घुमने तो हम सभी इन पंगो से दुर रहते है, लेकिन हमारे अधिकार कम नही होते कि ओर हम सभी ही उन कनूनो का पालन भी करते है, अब कोई पागलो की तरह से भी शोर ्मचाये तो लोग हंस कर निकल जायेगे, ओर अगर हम ग्रुप मै है( किसी भी देश का) तो कुदरती बात है शोर होगा ही, ज्यादातर लोग जो तंग होते है ऊठ कर दुसरे डिब्बे मै चले जाते है या टी टी से कह कर( अगर रिजेर्वेशन है )जगह बदल लेते है, कुछ लोग बहुत इज्जत ओर प्यार से पहले मांफ़ी मांगे गे, फ़िर बहुत प्यार से इज्जत से कहेगे कि कृप्या आप लोग धीरे बोले, ओर अगर फ़िर भी आप धीरे नही बोलते तो वो टी टी को कहेगे, फ़िर भी आप चुप नही होते तो टी टी आप को दोबारा कहेगा, ओर इन तीन बार मै भी आप चुप नही होते तो अगले स्टेशन पर पुलिस आप क इंतजार करेगी, लेकिन इन तीनो मै से कोई भी आप को बतमीजी से नही बोलेगा, जो बोला उस पर मान हानि का मुकदमा आप कर सकती है, फ़िर किसी के माथे पर नही लिखा कि वो यहां घुमने आया है या यहां का पक्का रहने वाला है. धन्यवाद
आपकी बातो में दम है भाटिया साहब |
ReplyDeleteबिल्कुल सही, केवल अपने अधिकारों का पता होना चाहिये, और उन्हें कैसे उपयोग कर सकते हैं।
ReplyDeleteBhatiya ji aapka kahna cach hai ... par ek aur baat par aapka dhyan dilaana chaahta hun ... vo German officer to maan gaya ... par agar ye kissa bhaartat ka hota ... to sochiye kya huva hota aapke is tarah poochne se ...
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