7/27/08

मुझे इन चित्रो से शिकायत हे ???

यह चित्र हे भारत के अलग अलग शहरो के जो समुन्द्र के किनारे बसे हे, ओर चित्र लिये गये हे समुन्द्र तट के लोग जिसे बीच भी कहते हे,यह चित्र देख कर मेरा सर शर्म से झुक गया, ओर सोचने पर मजबुर हो गया कि हम कहा कहा गन्द नही डालते, बस मोका मिले एक बार गन्दगी डालने का, घर के बाहर, गलियो मे, खाली प्ल्ट्स मे, खुली जगह पर, सडक पर, मेदान मे,दुकानो के सामने , ओर हम रहते कहा हे गन्दगी के ढेर पर ही,घर से निकलो सामने कुडा, थोडा आगे जाओ फ़िर कुडा, बाजार मे जाओ फ़िर कुडा यानि हर तरफ़ कुडा ही कुडा तो हम कहां रहते हे, कुडे पर ही ना,पहले नीचे के चित्र देखे,कुछ सोचे, ओर हो सके तो अभी से निश्चय करे ना तो हम कुडा इधर उधर फ़ेकेगे, ना बच्चो को फ़ेकने देगे, ओर ना ही किसी ओर को, तो चलिये हमारी अपनी करतुतो की एक झलक देखे, ओर हो सके तो अपने अपने मुहल्ले मे, सोसाईटी मे एक एक कमेटी बनाये ओर कुडे फ़ेकने वाले पर जुर्माना लगाये, हम जब तक नही उठे गे तब तक हम यु ही कुडे पर पडे रहे गे,
यह वो समुन्द्र तट हे जहां हम सुबह शाम घुमने जाते हे, ताजी हवा लेने, यहा हजारो सेलानी आते हे, ओर यह देख कर कया सोचते होगे हमारे बारे मे.....................











10 comments:

  1. ये तो सिर्फ दिखने वाला कूड़ा है। जो अरबों टन का कूड़ा आज हम अपने सर में लिये घूमते हैं पहले उससे निपटारा पाना होगा! लोगों की सोच को बदलना होगा।

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  2. मैं कल ही अपनी ससुराल के कस्बे जो 20000 की आबादी का कस्बा है हो कर आया हूँ वहाँ गली गली सड़क सड़क यही हाल है। नगरपालिका का अध्यक्ष एक चिकित्सक है।
    आप की शिकायत वाजिब है।

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  3. बहुत बुरा है, मुझे भी शिकायत है ...

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  4. इस बारे में सरकार भी कुछ नही करती।शोर भले ही मचाती हो।जब तक गंदगी फैलानें वालो पर जुर्माना या सजा देनें का कार्य नही किया जाएगा तब तक शायद कोई सुधार की आशा नही है।

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  5. यह संस्कृति के रखवालो का देश है....कचरा न फैलाने वालो का नहीं.

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  6. आपकी शिकायत वाजिब है लेकिन यही हक़ीकत है,
    ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में nature के लिए जागरूकता लानी होगी

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  7. आपकी शिकायत वाजिब है... अधिकतर जगहों का यही हाल है... जागरूकता ही हल है और कुछ नहीं.

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  8. ये हर शहर और यहाँ तक की गाँव की भी हालत है ! इसको अगर हम सरकार के भरोसे छोड दे तो कभी कुछ नही होगा ! अगर हम इसको अपनी निजी जिम्मेदारी मान ले तो समस्या ही नही है ! भाई मैं तो रोज सुबह मेरे घर की कचरे की थैली ख़ुद जाकर नगर निगम की कचरा पेटी में डालता हूँ ! वैसे ही जैसे मन्दिर में जल चढाने के लिए जल का लौटा ले जाता हूँ ! ये हम लोगो ने कुछ
    साल पहले प्रण लिया था ! अब आदत हो गई ! देखा देखी कुछ और लोगो ने भी शुरू किया पर वो संख्या नही बनी !
    खैर जो भी हो अपने को तो मन्दिर जाने जितना ही आनंद इस काम में भी आता है ! जो भी भाई इसे पढ़ रहा हो वो ये ना समझे की इससे क्या होगा ? सिर्फ़ दिखावा है ! नही मेरे भाई -- याद रखना मंजिल चाहे हजार मील दूर की भी हो ! पर मंजिल की तरफ़ पहला कदम हमेशा ही छोटा होता है ! वो सुबह कभी तो आयेगी ?

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  9. यही दुर्दशा भारत के हर शहरी नदी के किनारों पर भी है राज भाई ! वाकई में शर्म से सर झुक जाता है हमारा !
    आपने बहुत प्यारा प्रयत्न किया है, मुझे आश्चर्य है की इतने सारे फोटोग्राफ्स कहाँ से इकट्ठे किए होंगे ! बहरहाल ऐसे प्रयत्नों को जारी रखें शायद हम लोग कुछ सीख सकें !

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  10. बहुत ही सुंदर खींचे आपने यह फोटो. हर फोटो एक गैरजिम्मेदारी की कहानी कह रहा है. एक सार्थक व्यंग है कचरा मानसिकता पर.

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मुझे शिकायत है !!!

मुझे शिकायत है !!!
उन्होंने ईश्वर से डरना छोड़ दिया है , जो भ्रूण हत्या के दोषी हैं। जिन्हें कन्या नहीं चाहिए, उन्हें बहू भी मत दीजिये।