यह वो समुन्द्र तट हे जहां हम सुबह शाम घुमने जाते हे, ताजी हवा लेने, यहा हजारो सेलानी आते हे, ओर यह देख कर कया सोचते होगे हमारे बारे मे.....................










वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ए आसमाँ हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है










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"मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें। उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा। जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा।" -- महात्मा गांधी
"अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।" -- महामना मदनमोहन मालवीय
ये तो सिर्फ दिखने वाला कूड़ा है। जो अरबों टन का कूड़ा आज हम अपने सर में लिये घूमते हैं पहले उससे निपटारा पाना होगा! लोगों की सोच को बदलना होगा।
ReplyDeleteमैं कल ही अपनी ससुराल के कस्बे जो 20000 की आबादी का कस्बा है हो कर आया हूँ वहाँ गली गली सड़क सड़क यही हाल है। नगरपालिका का अध्यक्ष एक चिकित्सक है।
ReplyDeleteआप की शिकायत वाजिब है।
बहुत बुरा है, मुझे भी शिकायत है ...
ReplyDeleteइस बारे में सरकार भी कुछ नही करती।शोर भले ही मचाती हो।जब तक गंदगी फैलानें वालो पर जुर्माना या सजा देनें का कार्य नही किया जाएगा तब तक शायद कोई सुधार की आशा नही है।
ReplyDeleteयह संस्कृति के रखवालो का देश है....कचरा न फैलाने वालो का नहीं.
ReplyDeleteआपकी शिकायत वाजिब है लेकिन यही हक़ीकत है,
ReplyDeleteग्लोबलाइजेशन के इस दौर में nature के लिए जागरूकता लानी होगी
आपकी शिकायत वाजिब है... अधिकतर जगहों का यही हाल है... जागरूकता ही हल है और कुछ नहीं.
ReplyDeleteये हर शहर और यहाँ तक की गाँव की भी हालत है ! इसको अगर हम सरकार के भरोसे छोड दे तो कभी कुछ नही होगा ! अगर हम इसको अपनी निजी जिम्मेदारी मान ले तो समस्या ही नही है ! भाई मैं तो रोज सुबह मेरे घर की कचरे की थैली ख़ुद जाकर नगर निगम की कचरा पेटी में डालता हूँ ! वैसे ही जैसे मन्दिर में जल चढाने के लिए जल का लौटा ले जाता हूँ ! ये हम लोगो ने कुछ
ReplyDeleteसाल पहले प्रण लिया था ! अब आदत हो गई ! देखा देखी कुछ और लोगो ने भी शुरू किया पर वो संख्या नही बनी !
खैर जो भी हो अपने को तो मन्दिर जाने जितना ही आनंद इस काम में भी आता है ! जो भी भाई इसे पढ़ रहा हो वो ये ना समझे की इससे क्या होगा ? सिर्फ़ दिखावा है ! नही मेरे भाई -- याद रखना मंजिल चाहे हजार मील दूर की भी हो ! पर मंजिल की तरफ़ पहला कदम हमेशा ही छोटा होता है ! वो सुबह कभी तो आयेगी ?
यही दुर्दशा भारत के हर शहरी नदी के किनारों पर भी है राज भाई ! वाकई में शर्म से सर झुक जाता है हमारा !
ReplyDeleteआपने बहुत प्यारा प्रयत्न किया है, मुझे आश्चर्य है की इतने सारे फोटोग्राफ्स कहाँ से इकट्ठे किए होंगे ! बहरहाल ऐसे प्रयत्नों को जारी रखें शायद हम लोग कुछ सीख सकें !
बहुत ही सुंदर खींचे आपने यह फोटो. हर फोटो एक गैरजिम्मेदारी की कहानी कह रहा है. एक सार्थक व्यंग है कचरा मानसिकता पर.
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