3/8/09

खर्चा... बूझो तो जाने ??

अरे यह वो वाली पहेली नही, जो मै हमेशा बूझने के लिये पुछता हुं, यह पहेली हमारी बीबी ने हम से बूझी ? मुझे तो इस का जबाब आता नही ,शायद आप बता सके तो बताये...

मेरे तीन चार घंटे या इस से भी ज्यादा समय ब्लांग पर लगते है, कभी कभार हमारी बीबी भी पास आ कर बेठ जाती है, ओर अब तो वो भी आप सब को जानने लगी है, अभी दो दिनो से वो जो पढ रही थी, सो आज पुछने लगी कि यह महिला दिवस पर भारत मे नारिया क्या मांगती है.... ओर किस से मांगती है.
हम ने कहा भाई वो बेचारी अपने हक मांगती है, बीबी ने पुछा कोन सा हक ? मेने कहा पता नही, फ़िर बोली किस से मांगती है, अपने पिता से ? भाई से? पति से ? बेटे से ? किस से? अब मुझे गुस्सा तो बहुत आया, मेने कहा अरे तुम तो दिल्ली की हो इस बारे तुम्हे पता होना चाहिये, तो बोली ओ के मुझे भी हक दो.... अगर मेरे से आज गुस्से से बोले तो मै भी नारी एकता जिन्दा वाद के नारे लगाऊगी..

मेने कहां मेरी मां ! मै तेरे पाव पकडता हुं, मुझे नही पता कि यह क्या मांगती है, ओर किस से मांगती है, बीबी ने बहुत ही गुस्से से मेरी ओर देखा ओर बोली तुम बताना ही नही चाहते, मेने कहा मुझे राम प्यारी की कसम मुझे क्या इन नारियो को खुद भी नही पता कि वो क्या मांग रही है?

आज सुबह से हमने ने किसी ने भी कुछ नही खाया, बीबी ने हडताल कर दी, ओर बोली पहले बताओ यह बहुत शरीफ़ नारियां कयो यह महिला दिवस मनाती है ? मेने बताया अरी पागल यह आजादी चाहती है ? इस लिये... थोडी देर सोच कर बोली किस से......हम ने कहा पता नही.... अगर आप किसी को पता हो तो जरुर लिखे... थोडा समझा कर लिखे.
आप सभी का धन्यवाद

16 comments:

  1. wo aazadi mangti hai rudhi wadi galat paramparo se,jinohe unhe khule aasman ke tahat saans lene ki ijajat to di magar ghutan bhari saans.saari paramparaye kharab hai aisa nahi,bahut kuch achhi bhi hai,haa bade shaharo ka sochne ka tarika bahut badla hai nari ki aur magar bahut se dehaton mein usko apni marzi bhi nahi kehne di jaati.wo bas shiksha paana chahti hai.kisi ek se nahi nyaay mangti,par saare samaj se mangti hai.bharat ki nari ka matlaab nahi samjhe hum,aaj to vishwa mahila din hai.mana ke western deshon mein nari aur nar alag nahi lekin shayd bharat aur usase bhi jyada afgani deshon mein unki sthiti bahut buri hai,school jaati hai chori to taliban marti hai,bhala ye kaisa riwaz hai.
    hamara shahar bada hai,magar hum jis hospital mein kaam karte hai waha aanewali aurat marizon ki halat bahut buri hai.na shisksha ,na khane ko dhang se dete hai,kehte hai aurat ko gud(jaggery) kya khilana,rukhisukhi kha le,rehle.

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  2. हमने आज जो पोस्ट की है उस व्यवस्था में तो पूरी आज़ादी मिल रही थी.

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  3. एक नारी दूसरी नारी का सम्मान करने लग जाये तो वही काफ़ी समस्याओं का निदान हो जायेगा । शायद मांगने कि जरूरत ही नही पड़े । मुझे आपकी यह पोस्ट बहुत पसन्द आयी

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  4. भाटिया जी,चाहे तो आप इसे युग का प्रभाव कह लीजिए या फिर पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण यहां हर कोई अपने अधिकारों के प्रति चिन्तित है. अधिकार् हर व्यक्ति चाहता है लेकिन अपने कर्तव्यों के बारे में सोचने का किसी के पास समय नहीं .......हमें फलानी परम्परा से आजादी चाहिए,हमें ढिमकानी से.अपने संस्कार,संस्कृ्ति ओर परम्पराओं की खिलाफत/निन्दा करना ही इन लोगों के लिए आधुनिक कहलाने का प्रयाय बन गया है.अगर सच पूछो तो इन्हे समाज में नैतिकता का ह्यास करने और अपनी उछ्र्न्खलता के प्रसार करने की मनमानी चाहिए न कि कोई आजादी.
    वास्तव में इन्हे आजादी चाहिए अपने कर्तव्यों से भाटिया जी,मैं तो कहूंगा कि आप और हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं,जो कि अपने संस्कारों को साथ लिए अपने परिवार सहित जीवन सुखपूर्वक गुजार रहे हैं, वर्ना तो इस देश का भगवान ही मालिक है.(अब तो शायद उसके हाथ में भी कुछ न रहा हो)
    खैर छोडिए,पहेली की बात करते हैं,मैने अपना जवाब दे दिया है जो कि 100% सही है,इसे आप भी स्वीकार करोगे.
    (अब तो बस आप फटाफट मेरे ईनाम की राशी भेज दीजिए)
    होली के पावन पर्व की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाऎं....कामना करता हूं कि आपके जीवन में संस्कारहीनता की काली छाया न पडे.
    पुन: शुभकामनाऎं........

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  5. एक नारी दूसरी नारी का सम्मान करने लग जाये तो वही काफ़ी समस्याओं का निदान हो जायेगा । शायद मांगने कि जरूरत ही नही पड़े ।
    भाटिया जी मै भी नरेश जी से सहमत हूँ और आज ताऊ के ब्लॉग पर भी नारी दिवस पर लिखा वो भी बहुत सटीक था |

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  6. देखिये मूल रुप से यह सवाल ही गलत है. नेतागिरी करने के लिये आजादी चाहिये या काम करने के लिये.

    जो कुछ भी व्यवस्थाएं समाज मे थी उअन्मे नारी का शोषण तो होता आया है. और इसी शोषण से आजादी का मूळ मुद्दा है. पर मूल मुद्दे पर कोई बात करना नही चाहता.

    हम जब हमारी बहन बेटी पर बीतती है तब सिर्फ़ तकलीफ़ पाते हैं. और जहां हम जुल्म करने वाले बन जाते हैं वहां सब आदर्श धरे रह जाते हैं.

    क्या पुरुष अकेला ही अत्याचारी है? क्या दहेज मामलों मे महिला शरीक नही है जुल्म करने के लिये?

    कोई मना नही कर सकता. पर सवाल है कि जब बागड ही खेत खा रही हो तो मनाते रहिये महिला दिवस. इनसे कुछ नही होना जाना.

    मूल मुद्दे पर अगर काम किया जाये तो अनेक विसंगतियों का अंत किया जा सकता है.

    सिर्फ़ पुरुष से मांगने से क्या होगा? और नारी आज तय करले तो पुरुष की औकात क्या है ?

    आज आपके घर रोटी क्युं नही बनी? कारण भाभीजी हडताल पर हैं.

    मेरा स्पष्ट रुप से मानना है कि जब तक नारी की मदद नारी नही करेगी तब तक ये सब ढकोसले बाजी है.

    रामराम.

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  7. " अब तक आये जवाबो से हड़ताल खत्म हो जानी चाहिए ....."

    Regards

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  8. मुझे तो इस लेख को पढ़ कर केवल हँसी आयी क्युकी लेखक और लेखक की पत्नी भारतीये होते हुए भी आज़ादी का मतलब नहीं समझते । हर भारतीय आज़ादी का मतलब जनता हैं । आज़ादी का मतलब समझना हो तो महात्मा गाँधी को पढे और समझे आज़ादी मिलती नहीं हैं आज़ादी अर्जित की जाती हैं । हर इंसान आजाद ही पैदा होता हैं और समानता से रहना उसका हक़ हैं । सामाजिक व्यवस्थाये समाज बनता हैं और वो बनाते हैं जो उस समय ताकत मे होते हैं । जो ताकत मे होते व्यवस्था उनके हिसाब से बनती हैं । भारतीये समाज की व्यवस्था पुरूष प्रधान हैं और इस व्यवस्था मे नारी नारी को देवी का दर्जा दे कर उससे उसके सब मंवियाए अधिकार छीन लिये जाते हैं । देहेज देकर कन्यादान करके पुत्री से पिता का नाम छीन लिया जाता हैं । मांग मे सिंदूर भर कर पत्नी बनाकर पत्नी का नाम ही गुम कर दिया जाता हैं { इसी पोस्ट मे देख ले पत्नी / बीवी का कोई नाम नहीं हैं } । और ये सिलसिला जनम भर का होता हैं । जिनको अच्छा लगता हैं उनको मुबारक क्युकी हर एक को अपने सुख खोजने का अधिकार हैं । पर जैसा महक ने कहा औरते अव्यवस्था से आज़ादी चाहती हैं और वो पुरूष से नहीं समाज से इस आज़ादी की बात करती हैं । जो भी नारियां { इस ब्लॉग पोस्ट के लेखक की बीवी जी भी अब नाम नहीं हैं सो नाम नहीं ले पा रही हूँ आशा हैं क्षमा करेगी और अगली बार अपने पति से अपना नाम भी लिखवायेगी } पुरूष से आज़ादी मांग रही हैं वो पुरूष को अपना आका , मान रही हैं फिर चाहे वो पिता हो या पुत्र या पति । बाकी समाज मे सामंती की बात करती हैं क्युकी वो पुरूष को मालिक नहीं मानती । कानून और संविधान मे बराबरी का अधिकार हैं स्त्री पुरूष का सो समाज की व्यवस्था मे भी हो ।
    आशा हैं ये पहली अब सुलझ गयी होगी

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  9. पहली आज़ादी तो उसे पुरुष की गंदी नीयत व घटिया सोच से चाहिए। और ऐसे हर पुरुष से भी, जो आज के जमाने में आँख बन्द करके बैठा है व संसार की सच्चाई की भनक तक नहीं है उसे। या नादान बनने व यथार्थ से मुँह छिपाने की आदत है, या दम्भ है।

    खैर!

    यदि आपको स्वयं वास्तव में ही नहीं पता तो उन्हें क्या बताया जा सकेगा। बात सही है आपकी।

    अगर वास्तव में सत्य की तह त जाने की इच्छा हो व केवल एक पोस्ट लिखने के लिए यह मुद्दा न उठाया हो तो
    सच्चे मन से, आप एक काम कीजिए - इस Beyond The Second Sex : स्त्री विमर्श ( http://streevimarsh.blogspot.com ) पर जाकर स्वयं या उन्हें नियमित ने को कहें। यदि इतना पढ़ना सम्भव न हो तो केवल ‘एकालाप’ स्तम्भ
    ( http://streevimarsh.blogspot.com/search/label/EKALAAP%20%3A%20REGULAR%20COLUMN )

    को अवश्य पढ़ें। इसमें ‘मुक्ति’ और ‘किस से मुक्ति’ जैसे प्रश्नों के उत्तर बड़े साफ़ साफ़ दिए गए हैं, आपको व भाभी को समझने में सहायता मिलेगी।

    आपकी उलझन सुलझने की शुभकामनाओं सहित।

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  10. 8 मार्च महिला दिवस दुनिया भर में शोषित - पीड़ित महिलाओं की मुक्ति के लिए मनाया जाता है... जिसे की अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कहते हैं... जिसके अंतर्गत महिलाएं रलियों और संक्रतिक कार्यक्रमों से स्त्री मुक्ति के संघर्ष को पूरा करने का अपना सकल्प दोहराती हैं...
    1910 में डेनमार्क की राजधानी कोपनडेगन में आयोजित समाजवादी महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन में इस दिन को दुनिया के पैमाने पर मनाने का संकल्प लिया गया था...
    ________________________
    क्यों मनाया जाता है महिला दिवस
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    8 मार्च 1857 में न्यूयार्क सिटी के क्लोथ मिल की महिला कामगार अपने कम के घंटे कम करने और कम की हालत सुधारे को लेकर जब हजारों की संख्या में सडको पर उतरी तब न उन महिलाओं को इस बात का अंदाजा था और न उतपीडको को ये गुमान था की इन महिलाओं ने जो बिगुल फूँका है उसकी अनुगूंज इतिहास में बार बार दुनियाभर में सुनाई देगी... और महिलाओं को एक बेहतर दुनिया बनाने इस लिए संघर्ष हेतु प्रेरणा देती रहेगी...
    इसके बाद 1908 में न्यूयार्क के ही सुई मिल में कार्यरत महिलाओं ने काम की बेहतर सुविधाओं को लेकर मार्च महीने में ही जबरदस्त प्रदर्शन किया...
    इसके बाद 1910 में अंतर राष्ट्रीय सम्मेलन में मशहूर नेत्री और जर्मनी की समाजवादी क्लारा जेटकिन ने यह प्रस्ताव रखा की 8 मार्च 1857 इस महिलाओं के एतिहासिक आन्दोलन की याद में हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाने की घोषणा करनी चाहिए. क्लारा इस प्रस्ताव को मान लिया गया और 1911 में योरोप और अमेरिका के कई देशों में इसे अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया गया...
    समाजवादी आन्दोलन का दायरा जैसे जैसे फैलता गया अन्य देशों में भी इसका प्रचार प्रसार होता गया...
    आज आलम यह है की इस दिन को संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपना लिया है और तमाम मुल्कों में इसे सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है...

    मीत

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  11. क्‍या चाहिए महिलाओं को ... बस इतना ही कि वह जितना निस्‍वार्थ भाव से पुरूषों की खुशी से खुश रहा करती है ... पुरूष भी उसकी खुशी से खुश रहे ... जितना वह पुरूषों को सहयोग दिया करती है ... उतना उसे भी सहयोग मिले ।

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  12. मेरे हिसाब से उलझन की यही सुलझन है की जितनी आबादी महिलाओं की इस दुनिया मैं है उसी हिसाब से वे हर क्षेत्र मैं वे अपनी हिस्सेदारी और अपना अधिकार इस महिला दिवस माध्यम से जता रही है जो की वास्तव मैं होना चाहिए .
    आप सभी को महिला दिवस और होली की बहुत बहुत बधाई और सुभकामनाएँ .

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  13. मेरे हिसाब से उलझन की यही सुलझन है की जितनी आबादी महिलाओं की इस दुनिया मैं है उसी हिसाब से वे हर क्षेत्र मैं वे अपनी हिस्सेदारी और अपना अधिकार इस महिला दिवस माध्यम से जता रही है जो की वास्तव मैं होना चाहिए .
    आप सभी को महिला दिवस और होली की बहुत बहुत बधाई और सुभकामनाएँ .

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  14. आप सभी का धन्यवाद, बहुत सुंदर सुंदर सुचनाये मिली, पता चला,महक जी सुबर्मन्यम जी, राठोर जी,वत्स जी, रतन सिंह जी, ताऊ राम पुरिया जी, सीमा जी,रचना जी, कविता जी,मॊत जी,संगीता जी,ओर दीपक कुमार जी, ऎसी कोई बात नही हम दोनो मियां बीबी कभी नही लडे आज तक बस एक बात जाननई थी सो आप की टिपण्णी के जरिये मुझे सही जबाब मिल गया, ओर पता चल गया कि इस समय भारत मे ज्यादा तलाक क्यो हो रहे है, जब तक हम किसी जगह जायेगे ही नही तो हमे क्या पता उस जगह के बारे केसी है, वहा क्या क्या है, वस सुनी सुनाई बातो पर हम लीडर बन जाये , खुद अंधेरे मै तो बेठे है दुसरो को भी गलत शिक्षा दे....
    मै किसी का दिल नही दुखाना चाहता, ओर ना ही कोई ऎसी बात कहना चाहता हूं कि किसी को बुरी लगे, लेकिन आजादी की बात करने से पहले एक बार बंधन मै बन्द कर तो देखो जिन्दगी कितनी हसीन है इस बंधन मै, इस रिश्ते नातो को निभा कर तो देखो, इन रश्मो को कर के तो देखो, सिर्फ़ किसी एक गलत अनुभव से , किसी एक की गलती से ना तो सारे मर्द खराब होते है, ओर ना ही सारी नारिया खराब होती है, आओ हम सब मिल कर आने वाली पीडी को प्यार करना सीखाये, मिलजुल कर रहना सीखाये, एक दुसरे पर विशवास करना सीखाये, छोडॊ इन नफ़रत की बातो को, आओ प्यार की बाते करे,
    मीत जी आप ने बहुत सही ढंग से अमेरिका की महिलाओ के बारे बताया, लेकिन उन महिलाओ का उस से पहले क्या हाल था इस पर रोशनी डालते तो बहुत ही अच्छा होता.
    रचना जी, ओर कविता जी हम सब एक दुसरे के बिना अधुरे है, मर्द को जितनी ऒरत की जरुरत है ऒरत कॊ भी मर्द की उतनी ही जरुरत है, फ़िर क्यो , किस बात को ले कर झगडा.
    केसा झगडा, हक प्यार से अपने आप मिल जाता है, ओर रिशतो मै ज्यादा मिठास भी आती है, ओर कुछ ऎसे रिशते होते है जिन मै हक मांगा नही जाता प्यार ओर विशवास से अपने आप मिल जाता है.....
    छोडो इन सब बातो को
    मुझे यही समय मिलता है, टिपण्णीय्प को चेक करने के लिये, ओर जबाब देने के लिये
    आप सभी का धन्यवाद

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  15. jinke paas kam nahi hota, use time pas karne ke liye kuchh na kuchh to mudda chahiye....jese in dino Maharstra ki do partiyan pata nahi "Mumbai" word kisi bhi se sunte hi mudda bana dete hai..bhale hi jayaj ho ya najayaj, ab unhe kya chahiye wo to unhe hasil hi hai...yani ki "publicity".

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  16. Unhe kya chaiye ye to wo hi jane, mujhe lagta hai unhe khali waqt bitane ke liye mudda chahiye....jese in dino MH ki do partiyon ko "Mumbai" word se itna prem ho gaya hai ki kisike bhi muh se sun lete hai to media ko job dila dete hai.ab uhe actually aur kuchh nahi "Publicity" chahiye jo unhe mil rahi hai.

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नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******

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मुझे शिकायत है !!!

मुझे शिकायत है !!!
उन्होंने ईश्वर से डरना छोड़ दिया है , जो भ्रूण हत्या के दोषी हैं। जिन्हें कन्या नहीं चाहिए, उन्हें बहू भी मत दीजिये।