11/27/09

अन्ताक्षरी कविताओ की भाग १

सब से पहले आप सभी मेरी तरफ़ से इस सुंदर सुबह की नमस्ते, राम राम, सलाम, सत श्री अकाल
आप सब कवियो , कवियत्रयो का ओर अन्य साथियो का दिल से स्वागत, आप सभी का सहयोग हमे चाहिये, ओर आज आप इस आंतक्षरी मै अपनी कविता , दुसरो की कविता, गजले ,शेर ओर छंद की दो दो लाईने लिख कर इस इस आंतक्षरी को चार चांद लगाये.
आप ने अपने साथी के छोडे अक्षर से ही अपनी रचना शुरु करनी है, अगर एक समय मै दो तीन साथी इकट्ठे ही टिपण्णी देते है तो उस अक्षर से पहली टिपण्णी ही मान्य होगी, बस आप प्यार से ओर थोडे ध्यॊरे से इस खेल को खेले, अगर यह खेल अच्छा लगा आप सब को तो फ़िर इसे सप्ताह मै एक दिन पका रखा जायेगा, यानि इस के लिये एक दिन निशचित किया जायेगा.

आप की रचना का आखरी अक्षर जो भी हो आप उसे अन्त मै ऎसे छोडे...... * क* या फ़िर "क" ताकि आगे वाले को सुबिधा हो,कडी से कडी मिलाये, एक रचना आज के दिन सिर्फ़ एक बार ही मान्य होगी,
नोट - इस पेज को टैब में खुला रखिये और अपना गाना गाकर और अंतिम अक्षर " " के बीच में लिखकर टिप्पणी करके आप दूसरी टैब में ब्लाग्स और चिट्ठियां पढ सकते हैं, और दूसरे कार्य कर सकते हैं। फिर जब फ्री होते हैं तो एक बार फिर से पेज को रिफ्रेश या रिलोड करिये और फिर से खेलना शुरु कर दीजिये।


तो जनाब अब चली हमारी आंताक्षरी की रेल....
जिन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग कतरा
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसु होता

*त*
जाते जाते.. कल के विजेता है हमारे प्रकाश गोविन्द जी.
ओर कल से फ़िर से आंताक्षरी गीतो भरी

116 comments:

  1. अन्ताक्षरी जारी रहे..

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  2. आपको नमस्कार..व सुप्रभातम.....

    काम कि अधिकता कि वजह से अन्ताक्षरी नहीं खेल प् रहा हूँ....... जबकि मन बहुत है......
    त से....

    तेरा मेरा प्यार अमर,
    फिर क्यूँ मुझको लगता है डर...

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  3. तारे ग़म के नज़र नहीं आते
    याद का तेरी चांद आने से

    *स*

    nearaj

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  4. रात ग़म की हो बेअसर काली
    चांद आशा का गर उगेला है
    *ह*

    नीरज

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  5. हरतरफ तमाशा आजकल ये खूब चल रहा,
    सरकार चलाने वाले के ऊपर मेंट है (गवर्न-मेंट )
    बदबू से बचने को रखते लोग सेंट है (सेंट)
    लाला जहां अपना काला धन छुपाने को
    रखता एकाउंट के ऊपर टेंट है (ऐकाऊंटेंट)
    जवान हर वक्त अफसर का ही हुक्म
    न माने, इसलिए कमान में पडा डेंट है ( कमान्डेंट):)

    "ह"

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  6. हरदम चलती रहे,अन्त्याक्षरी आपकी।

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  7. हरदम चलती रहे,अन्त्याक्षरी आपकी।

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  8. किनारों को किनारा न समझ ऐ दिल किनारे टूट जाते है
    कहने को जो अपने होते है वही तो रूठ जाते है
    दरिया किनारे बैठ बस यही सोचते है हम कि
    भरोसा करो जिन सहारो पर, अकसर वो सहारे छूट जाते है !
    "ह "

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  9. हर बीता पल इतिहास रहा,
    जीना तुझ बिन बनवास रहा

    ये चाँद सितारे चमके जब जब
    इनमे तेरा ही आभास रहा
    "ह "
    regards

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  10. ham the jinke sahaare wo hue na hamaare|
    dubi jab dil ki nayaa saamne the kinaare||
    "r"

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  11. राधा कृष्णा को पल पल पुकारे
    यादो के पल वो लगते हैं प्यारे
    झुकी झुकी यह पलके. अब क्यूँ है छलके.
    जब कृष्णा भी राधा- राधा पुकारे...

    रे **

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  12. रे मन काहे न धीर धरे
    *र*

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  13. र पर रूकि अंताक्षरी आगे बढ़ा न कोय
    र से राम-रहीम हैं र से रूक ना होय
    'य'

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  14. ये बहुत बढिया जी.

    रामराम.

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  15. शुक्रिया ताउ जी..
    पर इन्होंने ब्लाग पर समय क्या गड़बड़ सेट कर रक्खा है ?
    तभी मैं सोंच रिया था कि इन्ने सुबह-सुबह कैसे लोग आ गए काम न धाम अंताक्षरी खेलने!!

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  16. यह आज हम किस मुकाम से गुज़रने लगे
    तेरे साए भी अब मेरे साथ साथ चलने लगे

    ग *

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  17. गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
    जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
    शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
    दोऊ को एक रंग, काग सब भये अपावन॥
    कह ‘गिरिधर कविराय’, सुनो हो ठाकुर मन के।
    बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
    (गिरिधर)

    'क'

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  20. कुछ यादो के
    झुरमुट से साए हैं
    जो तेरी बातो से
    दिल में उतर आए हैं
    जगाना ना था इनको
    तूने अपनी कड़वी बातो से
    यह गुज़रे पल
    हमको अक्सर रुलाए हैं

    ह **

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  21. हरि के सब आधीन पै हरी प्रेम आधीन।
    याही तें हरि आपुही याहि बड़प्पन दीन॥
    (रसखान)

    'न'

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  22. नही है दूर कोई मंज़िल आपसे
    ज़रा नज़र को उठा कर तो देखिए

    रोने के लिए है सारी उमर यहाँ
    एक लम्हा हँसी का गुनगुना कर देखिए

    ए**

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  23. एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान-बटोही।
    हौं घनआनँद जीवनमूल दई कित प्यासनि मारत मोही।।
    (घनानंद)

    'ह'

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  24. होंठ चुप है नयन चुप है
    स्वर चाहे तेरा उदास है
    हवा में बह रहा राग रंग
    भी कुछ सहमा सा आज है
    पर फ़िज़ा में फैली झंकार बाक़ी है
    दिल को बाँध सके अभी वो राग बाक़ी है
    आस का दीप मत बुझा
    अभी कुछ उम्मीद बाक़ी है

    है **

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  25. है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन,
    ममता की शीतल छाया में, होता कटुता का स्वयं शमन।
    ज्वालाएँ जब घुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मुंदे नयन,
    होकर निर्मलता में प्रशांत, बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
    संकट में यदि मुसका न सको, भय से कातर हो मत रोओ।
    यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम से कम मत बोओ।
    (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’)

    'अ'

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  26. आती रही हिचकियाँ हमे तमाम रात
    दिल में फिर किसी का याद का बादल उतरा

    फिर से बहलाया हमने अपने दिल को दे के झूठी तस्सलियाँ
    पर यह किस्सा भी सिर्फ़ मासूम दिल को बहलाने का सबब निकला ..

    ला **

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  27. लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
    कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

    नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
    चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
    मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
    चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
    आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
    कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
    (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')

    'त'

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  28. तेरे आने की जब खबर महके
    तेरी खुशबू से सारा घर महके

    शाम महके तेरे तस्वुर से
    शाम के बाद फ़िर सहर महके


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  29. कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये,
    एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,
    प्राणों के लाले पड़ जायें त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,
    नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाये,
    बरसे आग, जलद जल जाये, भस्मसात् भूधर हो जाये,
    पाप-पुण्य सद्-सद् भावों की धूल उड़ उठे दायें-बायें,
    नभ का वक्षस्थल फट जाये, तारे टूक-टूक हो जायें,
    कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये!
    (बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’)

    'य'

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  30. यूँ ही कभी दिल के गीत तन्हाइयों में गुनगुना के देख
    ज़िंदगी है एक कोरा केंन्वास इस में सब रंग सज़ा के देख

    रोशन तमाम हो जाएँगी तेरी सब मंज़िल की राहें
    प्रेम का हर रंग इन में मिला के ज़रा तू देख

    कंपेगी टूटेगी हर उदासी की ज़ंजीरे तेरी
    ख़ुद को किसी की राहा का दीप बना के तू देख

    मिलती है यह ज़िंदगी सब रंगो को सज़ा के
    हर रंग में तू इसे बस मुस्करा के देख
    (रंजू):)

    ख*

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  31. खून, खैर, खाँसी, खुसी, बैर प्रीति, मदपान।
    रहिमन दाबे ना दबै, जानत सकल जहान॥
    (रहीम)

    'न'

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  32. नयनो की बात जब नयनो से हो जाती है
    सतरंगी सपनो से दुनिया सज़ जाती है
    (रंजू )

    ह **

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  33. हरि हरसे हरि देखके हरि बैठे हरि पास।
    या हरि हरि से जा मिले वा हरि भये उदास॥
    (अज्ञात)

    'स'

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  34. सावन की यह भीगी सी बदरिया
    बरसो जा के पिया की नगरिया

    उनके बिना मुझे कुछ नही भाये
    सावन के झूले कौन झुलाये...
    (रंजू)

    य **

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  35. यदि ईश्वर में विश्वास न हो,
    उससे कुछ फल की आस न हो,
    तो अरे नास्तिको ! घर बैठे,
    साकार ब्रह्‌म को पहचानो !
    पत्नी को परमेश्वर मानो !
    (गोपाल प्रसाद व्यास)

    'न'

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  36. न जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है
    तेरी आँख में झलकते हुए इस उम्र की कसम ,
    ऐ दोस्त !दर्द से रिश्ता बहुत ही गहरा है ..
    (मीना कुमारी)

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  37. हे बारिद! नव जलधर! हे धाराधर नाम!
    हे पयोद! पय सुन्दर, हे अतिशय अभिराम!!
    हे प्रानद आनन्द-घन, हे जगजीवन-सार!
    हे सजीव जीवन-धन, हे त्रिभुवन-आधार!!
    हे रन बंक धनुष धर, सर तरकस जलधार!
    ग्रीसम-विसम कलुस-हर, रवि-कर प्रखर प्रहार!!
    (श्रीधर पाठक)

    'र'

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  38. रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
    आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
    उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
    और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

    जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
    मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
    और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
    चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

    आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
    आज उठता और कल फिर फूट जाता है
    किन्तु, फिर भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो?
    बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

    मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
    देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
    स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
    आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

    मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
    आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,
    और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
    इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।

    मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
    कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
    वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
    स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

    स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
    "रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
    रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
    स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।"

    -दिनकर जी

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  39. वह यौवन भी क्या यौवन है
    जिसमें मुख पर लाली न हुई,
    अलकें घूंघरवाली न हुईं
    आंखें रस की प्याली न हुईं।
    वह जीवन भी क्या जीवन है
    जिसमें मनुष्य जीजा न बना,
    वह जीजा भी क्या जीजा है
    जिसके छोटी साली न हुई।
    (गोपाल प्रसाद व्यास)

    'इ' या 'ई'

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  40. इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


    यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,
    लहरालहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का,
    कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,
    बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,
    तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,
    उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!
    इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


    -बच्चन जी

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  41. गजभर की छाती वाला ही विष को अपनाता है।
    कोई बिरला विष खाता है॥
    (हरिवंशराय ‘बच्चन’)

    'ह'

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  42. हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल|

    चांदी-सोने-हीरे-मोती से सजती गुडियाँ|
    इनसे आतंकित करने की बीत गई घडियाँ|
    इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले|
    हमने तोड़ अभी फेंकी है बेडी हथकड़ियाँ||
    -बच्चन जी

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  43. यह निशानी मूक होकर
    भी बहुत कुछ बोलती है
    खोल इसका अर्थ पंथी
    पंथ का अनुमान कर ले।
    पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
    (हरिवंशराय 'बच्चन')

    'ल'

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  44. ले चल वहाँ भुलावा देकर,

    मेरे नाविक! धीरे धीरे।


    जिस निर्जन मे सागर लहरी।

    अम्बर के कानों में गहरी

    निश्चल प्रेम-कथा कहती हो,

    तज कोलाहल की अवनी रे।

    -जयशंकर प्रसाद

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  45. रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।
    पानी गये न ऊबरे मोती-मानुष-चून॥
    (रहीम)

    'न'

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  46. नाम बिन भाव करम नहिं छूटै।
    साध संग औ राम भजन बिन, काल निरंतर लूटै॥

    -दरिया साहब

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  47. समीर जी, बहुत आनन्द आ रहा है इस खेल में। किन्तु आवश्यक कार्य से जाना मजबूरी हो गई है।

    भाटिया जी, इस अन्ताक्षरी को यदि आप कल भी जारी रखेंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी।

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  48. अवधिया जी, आप काम कर आईये. मुझे भी दो घंटे की मोहलत चाहिये!!

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  49. नमस्कार जी , आप सब को, अवधिया जी, चलिये आप के कहने से यह आंतक्षरी कल यानि शनि वार को भी चलेगी.... लेकिन कहा गये सब, मुझे तो कविता आति नही इस लिये यह गीत चलेगा...
    टूट गयी, टूट गयी, टूट गयी
    टूट गयी मेरी मन की बीना, टूट गयी
    तो अब "य" कोई आओ भई खेले आगे

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  50. ट से टक्कर भीषणम अंताक्षरी के धाम
    अवधिया औ समीर को देवेन्द्र करें परनाम

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  51. मुझे देख कर आपका मुस्कराना
    मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
    "ह"

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  52. हाये !!! यहाँ तो है एक से बढ्कर एक लोग,
    टक्कर लेने से पहले मुझे करना पडेगा बाबा रामदेव जी का "योग"
    "ग"

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  53. ग़म-ए-हस्ती से बस बेगाना होता
    ख़ुदाया काश मैं दीवाना होता
    ग़म-ए-हस्ती से बस बेगाना
    "न"

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  54. न रवा कहिये न सज़ा कहिये
    कहिये कहिये मुझे बुरा कहिये

    दिल में रखने की बात है ग़म-ए-इश्क़
    इस को हर्गिज़ न बर्मला कहिये


    -दाग देहलवी

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  55. यह वायु चलती वेग से, ये देखिए तरुवर झुके,
    हैं आज अपनी पत्तियों में हर्ष से जाते लुके।
    क्यों शोर करती है नदी, हो भीत पारावर से!
    वह जा रही उस ओर क्यों? एकान्त सारी धार से। वह प्रेम है …
    (माखनलाल चतुर्वेदी)

    'ह'

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  56. हम से पूछो न हाले जहाँ
    जो मिले भी हमे छोड जाते रहे
    *ह* से

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  57. है कौन सा वह तत्व, जो सारे भुवन में व्याप्त है,
    ब्रह्माण्ड पूरा भी नहीं जिसके लिये पर्याप्त है?
    है कौन सी वह शक्ति, क्यों जी! कौन सा वह भेद है?
    बस ध्यान ही जिसका मिटाता आपका सब शोक है,
    बिछुड़े हुओं का हृदय कैसे एक रहता है, अहो!
    ये कौन से आधार के बल कष्ट सहते हैं, कहो?
    क्या क्लेश? कैसा दुःख? सब को धैर्य से वे सह रहे,
    है डूबने का भय न कुछ, आनन्द में वे रह रहे। वह प्रेम है …
    (माखनलाल चतुर्वेदी)

    'ह'

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  58. है इसी में प्यार की आबरू
    वो ज़फ़ा करें मैं वफ़ा करूँ
    जो वफ़ा भी काम न आ सके
    तो वोही कहें के मैं क्या करूँ
    "र"

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  59. रहें ना रहें हम
    महका करेंगें बनके कली बनके फिजां
    बागे वफा में

    'म'

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  60. रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
    जहाँ काम आवै सुई, कहाँ करै तलवारि॥
    (रहीम)

    'र'

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  61. राग भैरव प्रथम शान्त रस जाके
    शंकर को प्रिय लागे
    स्वर मधुर बाजे
    नि स गा म प धा नि स
    स नि ध प म ग रि रि सा
    राग भैरव प्रथम राग भैरव प्रथम
    "म" तान से संगीत समराट

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  62. टुकड़े टुकड़े दिन बीता धज्जी धज्जी रात मिली
    जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली
    (मीनाकुमारी)

    'ल'

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  63. लाखों तारे आसमान में, एक मगर ढूँडे ना मिला
    देख के दुनिया की दिवाली, दिल मेरा चुपचाप जला.
    "ल"

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  64. लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
    कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
    (सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”)

    'त'

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  65. तारक मणियों से सज्जित नभ
    बन जाए मधु का प्याला,
    सीधा करके भर दी जाए
    उसमें सागरजल हाला,
    मज्ञल्तऌा समीरण साकी
    बनकर अधरों पर छलका जाए,
    फैले हों जो सागर तट से
    विश्व बने यह मधुशाला।

    "ल"

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  66. ब्लॉग का शीर्षक
    "अन्ताक्षरी फिल्मी गीतों की"
    होता तो भ्रम नही होता!

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  67. लोचन-कमल, दुख मोचन, तिलक भाल,
    स्रवननि कुंडल, मुकुट माथ हैं।
    ओढ़े पीत बसन, गरे में बैजयंती माल,
    संख-चक्र-गदा और पद्म लिये हाथ हैं।
    विद्व नरोत्तम संदीपनि गुरु के पास,
    तुम ही कहत हम पढ़े एक साथ हैं।
    द्वारिका के गये हरि दारिद हरैंगे पिय,
    द्वारिका के नाथ वै अनाथन के नाथ हैं॥
    (नरोत्तमदास)

    'ह'

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  68. लाख छुपाओ छुप न सकेगा राज हो कितना गहरा
    दिल की बात बता देता है, असली नक़ली चेहरा

    "र"

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी आप की बात पर विचार कर रहे है, राय देने के लिये आप का धन्यवाद

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  69. हम दीवाने तेरे दर से नहीं टलनेवाले
    हम दीवाने हाय! हुम दीवाने तेरे
    हम दीवाने तेरे दर से नहीं टलनेवाले
    और मचलेंगे अभी तुझपे मचलनेवाले
    "ल"

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  70. लहराती सिर काट काट,
    बलखाती थी भू पाट पाट।
    बिखरती अवयव बाट-बाट,
    तनती थी लोहू चाट-चाट॥
    (श्यामनारायण पाण्डेय)

    'ट'

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  71. टुकडे है मेरे दिल के ,ऎ यार तेरे आंसू,
    "स"

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  72. साली है पायल की छम-छम
    साली है चम-चम तारा-सी,
    साली है बुलबुल-सी चुलबुल
    साली है चंचल पारा-सी ।
    यदि इन उपमाओं से भी कुछ
    पहचान नहीं हो पाए तो,
    हर रोग दूर करने वाली
    साली है अमृतधारा-सी।
    (गोपाल प्रसाद व्यास)

    'स'

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  73. सखी कैसे धरूँ मैं धीर
    हाय रे मेरे अब लो शाम न आये
    रि बहे नैनों से निस दिन नीर
    हाय रे मेरे अब लो शाम न आये
    रि सखी कैसे धरूँ मैं धीर
    "र"

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  74. रहिमन ओछे नरन सौं, बैर भली ना प्रीत।
    काटे चाटे स्वान के, दोऊ भाँति विपरीत॥
    (रहीम)

    'त'

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  75. तुम जो हमारे मीत न होते, गीत ये मेरे गीत न होते
    हँसके जो तुम ये रंग न भरते, ख़्वाब ये मेरे ख़्वाब न होते

    'त'

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  76. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
    कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान॥
    (रहीम)

    'न'

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  77. न जाओ सैंया छुड़ा के बैंया
    क़सम तुम्हारि मैं रो पड़ूँगी, रो पड़ूँगी
    मचल रहा है सुहाग मेरा
    जो तुम न हो तो, मैं क्या करूँगी, क्या करूँगी
    "ग" या फ़िर "इ" से

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  78. गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
    जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
    शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
    दोऊ को एक रंग, काग सब भये अपावन॥
    कह ‘गिरिधर कविराय’, सुनो हो ठाकुर मन के।
    बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
    (गिरिधर)

    'क'

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  79. कुछ हुआ हासिल न अब तक कोशिश-ए-बेकार से
    देख लेंगे सर भी टकरा कर दर-ओ-दीवार से
    "स"

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  80. सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।
    बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।।
    (तुलसीदास)

    'र'

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  81. रंगोली सजाओ रे रंगोली सजाओ
    तेरी पायल मेरे गीत आज बनेंगे दोनों मीत
    "त"

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  82. तुम उनसे पहले उठा करो,
    उठते ही चाय तयार करो।
    उनके कमरे के कभी अचानक,
    खोला नहीं किवाड़ करो।
    उनकी पसंद के कार्य करो,
    उनकी रुचियों को पहचानो,
    तुम उनके प्यारे कुत्ते को,
    बस चूमो-चाटो, प्यार करो।
    तुम उनको नाविल पढ़ने दो
    आओ कुछ घर का काम करो।
    वे अगर इधर आ जाएं कहीं ,
    तो कहो-प्रिये, आराम करो !
    उनकी भौंहें सिगनल समझो,
    वे चढ़ीं कहीं तो खैर नहीं,
    तुम उन्हें नहीं डिस्टर्ब करो,
    ए हटो, बजाने दो प्यानो !
    पत्नी को परमेश्वर मानो !
    (गोपाल प्रसाद व्यास)

    'न'

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  83. ना जाने चाँद कैसा होगा
    तुम सा हसीं तो नहीं
    होंगे रंगीन ये सितारे
    तुम से रंगीं तो नहीं
    "ह"

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  84. है बिखेर देती वसुन्धरा
    मोती सबके सोने पर
    रवि बटोर लेता है उसको
    सदा सवेरा होने पर
    और विरामदायिनी अपनी
    सन्ध्या को दे जाता है
    शून्य-श्याम-तनु जिससे उसका
    नया रूप छलकाता है
    (मैथिलीशरण गुप्त)

    'ह'

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  85. हे नटराज, आ आ
    गँगाधर, शम्भो भोलेनाथ, जय हो
    जय जय जय विश्वनाथ, जय जय कैलाश नाथ
    हे शिव शंकर तुम्हारे जय हो
    "ह"

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  86. हम धीर, वीर, गम्भीर हैं, हैं हम को कब कौन भय।
    फिर एक बार हे विश्व! तुम गाओ भारत की विजय॥
    (सियारामशरण गुप्त)

    'य'

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  87. ये मेरे अँधेरे उजाले न होते
    अगर तुम न आते मेरी ज़िंदगी में
    "म"

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  88. माटी कहे कुम्हार को तू क्या रूँदे मोहे।
    एक दिन ऐसा होयेगा मैं रूँदुँगी तोहे॥
    (कबीर)

    'ह'

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  89. हमको तुम्हारे इश्क़ ने क्या-क्या बना दिया
    जब कुछ न बन सके तो तमाशा बना दिया
    "य"

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  90. यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास।
    पाव सेर चाउर लिये, आई सहित हुलास॥
    सिद्धि करी गनपति सुमिरि, बाँधि दुपटिया खूँट।
    माँगत खात चले तहाँ, मारग वाली बूट॥
    (नरोत्तमदास)

    'ट'

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  91. टूट गयी, टूट गयी, टूट गयी
    टूट गयी मेरी मन की बीना, टूट गयी

    कैसे सुर के साज सजाऊँ
    कैसे सोये गीत जगाऊँ
    "ऊ"

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  92. ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहन वारी,
    ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
    कंद मूल भोग करें कंद मूल भो करें,
    तीन बेर खाती सो तीनि बेर खाती हैं।
    भूषण सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
    विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं।
    भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
    नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती है॥
    (भूषण)

    'ह'

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  93. हमसे मत पूछो कि हम क्या कर गए
    किस तरह नज़रों का दामन भर गए
    कोई इनकी शोख़ियाँ देखा किए
    हम तो इनकी सादग़ी पर मर गए
    "ए"

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  94. एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी।
    साधु ते होइ न कारज हानी।।
    (तुलसी)

    'न'

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  95. नज़र बचा कर चले गये वो वरना घायल कर देता
    दिल से दिल टकरा जाता तो दिल में अग्नि भर देता
    "त"

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  96. तंत्री नाद कवित्त रस सरस राग रति रंग।
    अनबूडे बूड़े तरे जे बूड़े सब अंग॥
    (बिहारी)

    'ग'

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  97. गुज़रा हुआ ज़माना, आता नहीं दुबारा
    हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा
    "र"

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  98. रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
    छाँह न वाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
    जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा दैहैं।
    जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
    कह ‘गिरिधर कविराय’, छाँह मोटे की गहिये।
    पाती सब झरि जाय, तऊ छाया में रहिए॥
    (गिरिधर)

    'ए'

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  99. ऐ दिल्रुबा जान-ए-वफ़ा तेरे सिवा कौन है मेरा
    ऐ दिल्रुबा जान-ए-वफ़ा तू ने क्या जादू किया
    "य"

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  100. यम्मा यम्मा, ये खूबसूरत समां ,
    बस आज की रात है जिंदगी ,
    कल हम कहां, तुम कहां ॥

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  101. हेम कुम्भ ले उषा सवेरे
    भरती ढुलकाती सुख मेरे।
    मंदिर ऊँघते रहते जब
    जगकर रजनी भर तारा।
    (जयशंकर प्रसाद)

    'र'

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  102. रात अंधियारी है
    रात अंधियारी है, मात दुखियारी है
    सुख से तू सो मेरे प्राण, मेरे मान, मेरी रैं के विहार
    रात अंधियारी है
    "ह"

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  103. हर सपने पर विश्वास करो, लो लगा चाँदनी का चंदन,
    मत याद करो, मत सोचो – ज्वाला में कैसे बीता जीवन,
    इस दुनिया की है रीति यही – सहता है तन, बहता है मन;
    सुख की अभिमानी मदिरा में, जो जाग सका वह है चेतन।
    इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो सेज बिछाकर मत सोओ।
    यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम से कम मत बोओ।
    (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’)

    'ओ'

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  104. ओ तेरे साथ साथ मेरी दुनिया भी जा रही है
    दिन छुप रहा है, ग़म की अब शाम आ रही है
    भारती १९५६
    "ह"

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  105. है अनिश्चित किस जगह पर
    सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
    है अनिश्चित किस जगह पर
    बाग वन सुंदर मिलेंगे
    (हरिवंशराय बच्चन)

    'ग'

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  106. गरीब जान के हम को न तुम दग़ा देना
    तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
    "न"

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  107. नियम और उपनियमों के बन्धन टूक-टूक हो जायें,
    विश्वम्भर की पोषण वीणा के सब तार मूक हो जायें,
    शान्ति दण्ड टूटे, उस महा रुद्र का सिंहासन थर्राये,
    उसकी शोषक श्वासोच्छवास, विश्व के प्रांगण में घहरायें,
    नाश! नाश!! हाँ, महानाश!! की प्रलयंकारी आँख खुल जायें,
    कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये!
    (बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’)

    'य'

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  108. ये रात भीगी-भीगी ये मस्त फ़िज़ाएँ
    उठा धीरे-धीरे वो चाँद प्यारा-प्यारा
    क्यों आग सी लगा के गुमसुम है चाँदनी
    सोने भी नहीं देता मौसम का ये इशारा
    "र"

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  109. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
    टूटे से फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परिजाय॥
    (रहीम)

    'य'

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  110. ये ख़ुशी का समाँ
    ज़िन्दगी है जवाँ
    आ निगाहें मिला के तो देख
    कह रही है फ़िज़ा
    दो घड़ी मुसकरा
    दिल की दुनिया बसा के तो देख
    "ख"

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  111. खीरा सिर ते काटिए, मलियत नमक लगाय।
    रहिमन करुए मुखन कौ, चहियत इहै सजाय॥
    (रहीम)

    'य'

    राज जी, बहुत आनन्द आया किन्तु अब मुझे कम्प्यूटर से उठना पड़ेगा नहीं तो फिर ...

    आप तो समझ ही गये होंगे!

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  112. जी नमस्कार कल फ़िर मिलेगे,साथ निभाने के लिये धन्यवाद

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  113. ये रेशमी ज़ुल्फ़ें, ये शरबती आँखें
    इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
    ""भ""

    अजी आंताक्षरी अभी खत्म नही हुयी नमस्ते तो हम ने आवधिया साहब को उस समय कही थी, तो आयेईये आगे खेले आप चाहे तो *भ* से या फ़िर **इ** से भी आगे गीत लिख सकते है.
    हम इंतजार कर रहे है जी

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  114. भये प्रकट कृपाला, दीन दयाला कौशल्या हितकारी। हर्षित महतारी, मुनिमन हारी अद्‍भुत रूप विचारी॥

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नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******

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मुझे शिकायत है !!!

मुझे शिकायत है !!!
उन्होंने ईश्वर से डरना छोड़ दिया है , जो भ्रूण हत्या के दोषी हैं। जिन्हें कन्या नहीं चाहिए, उन्हें बहू भी मत दीजिये।