मैंनें पूछा - बेटा क्या आपको कुछ चाहिये।
3/11/10
क्या पुलिस को बुलाऊं
कुछ दिन पहले की घटना है, सुबह के आठ बजे मैं तैयार हो रहा था। उर्वशी (मेरी बिटिया, उम्र 6 साल, कक्षा पहली) कमरे में आती है और कुछ ढूंढने का नाटक करती है। आमतौर पर वो स्कूल के लिये तैयार होने के बाद इस कमरे में नही आती। मैं समझ गया कि कुछ गडबड है और यह मेरे इस कमरे से निकलने का इंतजार कर रही है।
मैंनें पूछा - बेटा क्या आपको कुछ चाहिये।
मैंनें पूछा - बेटा क्या आपको कुछ चाहिये।
उर्वशी - नहीं पापा जी
मैं - क्या ढूंढ रहे हो, किसी चीज की जरुरत है तो मुझे बताओ
उर्वशी - नहीं कुछ नहीं
मैं तैयार हो चुका था तो दूसरे कमरे में नाश्ता करने के लिये आ गया। थोडी देर में उर्वशी भी आ गई।
मैनें उससे पूछा - क्या छुपाकर लाये हो
उर्वशी - कुछ भी नही
मैं - क्या है आपकी जेब में
उर्वशी - पापा कुछ भी नही है, देख लीजिये (उसने जेब में हाथ मारने का नाटक किया) इतनी देर में लव्य (मेरा बेटा, कक्षा नर्सरी, उम्र 3 वर्ष) सक्रिय हो चुका था। लव्य के कान और हाथ बडे तेज हैं। लव्य ने जबरन उर्वशी के कोट में हाथ डाल दिया और उसे उसकी जेब में दो रुपये का सिक्का मिल गया।
लव्य - देखो पापा, ये है दीदी के पास
मैं - उर्वशी, यह किसलिये ले जा रहे हो
उर्वशी - पापा हमारे स्कूल के बाहर प्याज के साथ भुजिया मिलती है, भईया को दिलाने के लिये। मैं अपने लिये नहीं ले जा रही हूं।
मैं - लेकिन बेटा आपको जो भी चाहिये हम दिलाते हैं ना और मैंनें आपसे पूछा भी था कि कुछ चाहिये तो बताओ, फिर यह चोरी किसलिये???
उर्वशी ने कोई जवाब नही दिया। (मैं स्कूल में जाते वक्त बच्चों को पैसे देने के खिलाफ हूं। हर चीज जो उनके लिये सही होती है हम खुद दिलवाते हैं।)
यह दूसरी बार है, जब उर्वशी ने चोरी की है। पहली बार काफी देर तक और प्यार से उसे समझाया था। उसने आईंदा ऐसा नही करने के वादा भी किया था और अब फिर से….………………
उर्वशी पुलिस को बुलाने के नाम से ही रोने लगती है, उसे पता है कि चोरी या कोई गलत कार्य करने पर पुलिस पकड कर जेल में बंद कर देती है और पिटाई भी करती है।
क्या उसने केवल रोमांच के लिये ऐसा किया है। मेरा विचार है कि कम से कम एकबार किसी पुलिस वाले को बुलाकर डांट फटकार लगवा दूं या आपके पास कोई दूसरा तरीका है उसे समझाने का। क्या पुलिस वाले के डपटने से उसके बालमन पर गलत असर भी हो सकता है।
अन्तर सोहिल
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23 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
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अरे नही , इस से बच्ची के दिल मै डर बेठ जायेगा, बस उसे प्यार से समझाये, ओर अच्छा बुरा भी बताये, अच्छी अच्छी कहानिया सुनाये, लेकिन उस के मन मै कोई डर मत पेदा करे, अपने आप समभल जायेगी.यानि पुलिस का ख्याल मन से निकाल दो
ReplyDelete"क्या पुलिस वाले के डपटने से उसके बालमन पर गलत असर भी हो सकता है।"
ReplyDeleteजरूर हो सकता है। उर्वशी को पुलिस वाले से फटकार दिलवाने की गलती कदापि न करें।
बच्चों पर अंकुश रखना आवश्यक है किन्तु उससे भी अधिक आवश्यक है उनको समझना। बच्चे स्वयं पर एक सीमा तक ही अंकुश सहन कर पाते हैं। सीमा से अधिक अंकुश उनके भीतर आक्रोश उत्पन्न करता है और यही आक्रोश विभिन्न रूप धर कर आपके सामने आता है, जैसे कि प्रस्तुत प्रकरण में इस आक्रोश ने चोरी का रूप धारण कर लिया है। उर्वशी को प्रत्येक चीज स्वयं दिलवाने के स्थान पर उसे भी कभी कभी स्वयं कुछ खरीदने का अवसर दीजिये। यदि वह प्याज भुजिया के कारण चोरी करना सीख रही है तो बेहतर है कि उसे उसके लिये कभी कभी पैसे दे दिये जायें।
गुडनेस आप प्लीज़ उस नन्ही सी जान पर ऐसा जुल्म ना करें. उसे पुलिस की धमकी भी ना दें. बच्चों को पैसे देना अच्छी बात नहीं पर जब वे स्कूल में सबको कुछ खाते देखते हैं तो उनका भी मन हो जाता है. आप हफ्ते दस दिन में खुद ही एक बार अपने मन से पैसे दे दिया करें.
ReplyDeleteओर हां बच्चो को महीने की जेब खर्ची बांध दे १०, या २० ,रुप्ये साथ ही उन्हे बाहर की चीजो के बार भी बताये,उन के नुक्सान के बारे, गंदगी के बारे तो जरुर फ़र्क पडेगा, वेसे बच्चो को ज्यादा प्यार या आक्रोश मत दिखाओ, ज्यादा प्यार जहां बच्चो को बिगाडता है वही ज्यादा गुस्सा भी बच्चो को आप से दुर ले जाता है, जब बच्चो को गलत ओर सही के बारे बताओगे तो वो खुद ही विचार भी करेगे, फ़िक्र मत करो, सब ठीक हो जायेगा बस आराम से, प्यार से समझाये
ReplyDeleteअरे नहीं भाई बच्चे को डराना मत आगे से , इतनी प्यारी बच्ची को तो पुलिस भी कुछ नहीं कहेगी । उसे आप अच्छे बुरे का पाठ पढाते रहिए ।
ReplyDeleteनियमित तो नहीं, किन्तु कुछ अंतराल में कथित जेबखर्च ज़रूर दें। बाल-सुलभ तरीके से पता भी करें कि उन पैसों का क्या किया गया।
ReplyDeleteबाहरी वस्तुओं की खामियां तो बताते ही रहें
कम से कम पुलिसिया धमकी तो न ही दें
आपने कहा, "आपको जो भी चाहिये हम दिलाते हैं ना" तो अब उसके साथ स्कूल जाकर वही प्याज की पकौड़ियाँ उसे दिलाइये और अपनी बात भी सच कर दीजिये और उसकी छोटी सी इच्छा भी. साथ ही बेटे को यह समझाइये कि इस तरह दीदी की जेब में हाथ नहीं डालना चाहिए.
ReplyDeleteसभी लोग समझा चुके हैं..सलाह मान लिजिये.
ReplyDeleteबच्चों को धमकाने से कुछ नहीं होगा..प्यार से उन्हें समझायें और आप भी समझें. बाकी बच्चों को खरीदता देखकर उसका भी मन करता होगा. कभी कभी प्यार से छूट देना चाहिये.
सभी का कथन सही है। इतने भी आदर्शवादी मत बनो भैया , बच्चे को कुछ दिलवा दिया करो।
ReplyDeleteलेकिन यहाँ यह जानना भी ज़रूरी है कि बच्चा क्या सचमुच खाने के लिए ही पैसे ले जा रहा है।
स्कूलों में बुलिंग भी खूब चलती है।
राज जी मैं तो बेटी के गलती करने पर उसे प्यार से समझाता हूँ। और मान भी जाती है। पर कई बार दोहरा देती है तो उसको फिर से समझा देता हूँ और याद दिलाता हूँ मैंने पहले भी बताया था ना। और कई बार महसूस करता हूँ वाकई वो समझ जाती है। बस कई बार खाने की चीजों के लिए जिद करती है। बस यही कहूँगा बस समझाओं। बैशक कभी कभी गुस्से में समझाना पडे।
ReplyDeleteलगता है आप बच्चों के प्रति कुछ अधिक सख्त हो गए हैं। उसे सिखाएँ। आप भी समझें कि बच्चे बड़े हो गए हैं। आप के हस्तक्षेप से परे खरीद और इस्तेमाल पर अपना विवेक प्रयोग करना चाहते हैं। उन के विवेक के विकास पर ध्यान देना होगा।
ReplyDeletedaya aati hai bachchi par aur aapki moodhta par... pity. kya aap jaise log aaj bhi hote hain?
ReplyDeletegive her pocket money 1Re. on per day basis, at least she will start to learn how money and purchasing works.
मुझे इस बारे में ज्यादा पता नहीं है | इसका कारण भी यह है कि मेरी इकलोती संतान मेरी १२ वर्षीय पुत्री है जो दूकान में मेरी मदद करती है | स्कूल जाने के बाद घर आने पर दूकान के कार्यों में हाथ बंटाती है | इस लिए उसे कभी ज़िद्द करने की जरूरत ही नहीं पड़ी | उसे कभी जेब खर्च के लिए मना भी नहीं किया है | लेकिन सही और गलत चीजों के बारे में मै उसे बताता रहता हूँ | उसे पता है कि बाहरी वस्तुएं खाने से रोग ग्रस्त हो सकते है |
ReplyDeleteपुलिस..!
ReplyDeleteना बाबा ना...भूलकर भी ये गलती मत करना. मैं एक सच्ची बात बताता हूँ . मेरा एक दोस्त था. कक्षा १२ में पढ़ने तक वह पुलिस के नाम से भी कांपता था. हम उसके भय का खूब मजाक उड़ाते थे. अब शायद ठीक हो चुका है. चलते-चलते अचानक गुम हो जाता ! दूसरे दिन बात समझ में आती कि उसने पुलिस को देख लिया था. दरअसल उसके माता-पिता ने भी बचपन से ही उसके बालमन में पुलिस का भय बिठा दिया था.
लालच सभी के मन में होता है. हम क्या कम लालची हैं! बच्चा है तो उसे सब बच्चों को खाते देखकर लालच आयेगी ही. उसे डांटने के बजाय समझाना चाहिए कि बाहर की वस्तुओं में कितनी मिलावट होती है. खुद घुमाना और जो-जो चाहे खिलाना भी चाहिए जिससे वह खुद ही खराब चीजों को खाना छोड़ देगी.
अरे अमित जी,
ReplyDeleteक्या करने की सोच रहे हो? छह साल की बेटी और दूसरी बार झूठ! इससे बेटी के अनुशासन का पता चलता है। मैं तो कहता हूं कि उसे थोडा बहुत झूठ बोलना भी सिखाइये।
अगर आज उसे पुलिस से डर लगता है तो ये तो बहुत ही गम्भीर बात है। आप उसके मन से पुलिस का डर निकालिये। किसी दिन अपने पुलिस दोस्त को वर्दी मे बुलाइये, वो बेटी को पुचकारेगा, प्यार करेगा, उसके साथ खेलेगा, तो बेटी के मन से पुलिस का डर निकल जायेगा। डर चाहे किसी का भी हो, खतरनाक होता है, इन्सान की कमजोरी होता है।
बच्चों को प्रेम से समझाने से बढ़िया कोई रास्ता नही है और यही कीजिए भी..
ReplyDeleteआप सबका बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteआप सबकी सलाह और राय मेरे लिये बहुत महत्त्व रखती है और मैं इन्हीं के अनुसार बच्चों को समझाने की कोशिश करुंगा जी
प्रणाम
क्या करने जा रहे है भाईसाहब आप ? उसे रोज़ पैसे दीजिये । यकीन कीजिये वह रोज़ बाहर का नही खायेगी जिस दिन उसके पैसे बच जाये उस दिन बाज़ार जाकर उसी पैसे से पेंसिल या ईरेज़र उसे खरीद दे । कभी उसके साथ उस भुजिया वाले के पास भी जाये और उसे बताये कि हायजनिक का क्या अर्थ होता है । पुलिस का भय...हाहाहा... मेरे एक मित्र पुलिस विभाग मे है वे कहते है कि यार बचपन से ही पुलिस की गलत छवि बच्चो के मन मे बिठा दी जाती है..फिर वे जीवन भर पुलिस से डरते है पुलिस मित्र भी हो सकती है । खैर इस पर मै " ना जादू ना टोना" ब्लॉग मे आगे चलकर "मस्तिष्क की सत्ता "लेखमाला के अंतरगत एक पोस्ट लिखूंगा पढ़ते रहियेगा ।
ReplyDelete...जब कोई पुलिसवाला अचानक आपके सामने आ जाये ....तब आप सोचना आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी..... बच्चे तो बच्चे हैं!!!!
ReplyDeleteबहुत सटीक विचारणीय . बच्चो को इतना भी न डराया जाय की वे बिलकुल डरपोक हो जाए ..क्योकि बच्चे बड़े कोमल स्वभाव के होते है ... जो चीज उन्हें समझाई या बताई जाए वे जल्द ग्राह कर लेते है भावुक होते है...
ReplyDeleteबच्चे दिल के सच्चे होते हैं... उन्हें डरना पाप है और खतरनाक भी.... वैसे उन्हें पैसे देना गलत नहीं है.. रोज नहीं कभी कबार ही सही.. जरा सोचिये जब बाकि बच्चे पैसे लाकर स्कूल में कुछ खाते होंगे तो आपके बच्चे कों हीन भावना होती होगी.. शेष आपकी मर्जी
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने।
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