5/3/10
कुछ ऎसी यादे जो बरबस ही मुस्कुराहटे ला देती है....
अजी बात कुछ पुरानी है, पिछले साल की जब हम मां से मिलने आखरी बार गये थे, घर से बच्चे हमे उडान से दो घंटे पहले एयर पोर्ट छोड आये, टिकट वगेरा तो मेने पहले ही घर से ऒ के कर ली थी, बोर्डिंग कार्ड बगेरा भी घर से ही ले लिया, बस समान दिया तो जल्द ही चेकिंग हो गई ओर हम अंदर पहुच गये, मेरे पास उस समय लेपटाप था, सुना था कि एयर पोर्ट पर इंटर्नेट सेवा फ़्रि है, लेकिन जब मैने जा कर इंटरनेट चलाना चाहा तो तो वो एक घंटे के ५ € मांग रह था, मेने अपना लेपटाप बन्द किया.
फ़िर टेक्स फ़्रि शाप पर गया.... बाप रे सब कुछ बाहर से यहां महंगा था, कुछ नही खरीदा, फ़िर वापिस बाहर आ गया, फ़िर एक मित्र को फ़ोन लगाया, तो राम राम के बाद उन्होने पुछा कि केसे फ़ोन लगाया, तो मेने कहा कि टाईम पास करने के लिये, ओर उन से फ़ोन पर करीब ४५ मिन्ट बात की, बात खत्म तो मुझे पेशाब आ गया, तो मेने अपना लेपटाप एक कुर्सी पर रखा उस पर अपन कोट रखा ओर मै शोचालय की ओर चल पडा, वहा काम निपटा कर वापिस आने लगा तो इधर उधर घुमता हुआ काफ़ी देर बाद वापिस आया.... तो देखा.... जिस जगह मेने लेपटाप रखा है वहां से सभी लोग दुर चले गये थे, ओर वो पुरी लाईन ही नही पुरा हाल ही खाली पडा था, उस सुन सान को देख कर मै समझा कि मेरी उडान निकल गई, लेकिन सिर्फ़ १० मिन्ट मे यह केसे हो सकता है? ओर मै अपनी मस्ती मै चलता हुआ अपनी जगह पर बेठ गया, तभी चार पुलिस वालो ने मुझे चारो ओर से घेर लिया, ओर पुछा यह समान आप का है? मैने कहा हां मेरा ही है, तो उन्होने कहा आंईदा ऎसे छोड कर मत जाये, आप की वजह से बहुत बडी गडबड होने से बच गई, ओर साथ ही उन्होने वायलेस से कोई सुचना दी दुसरी तरफ़ से आवाज आई हे भगवान तेरा ध्न्यवाद(जर्मन मै) ओर फ़िर सभी लोग धीरे धीरे वापिस मेरे आस पास बेठ गये, ओर मै सारा मामला समझ गया था,
फ़िर जब जहाज मै बेठे तो मेरे संग एक भारतिया बेठे थे, मुझे बहुत अच्छा लगा, उन के पहरावे से मुझे वो मुस्लिम लगे ओर वो थे भी मुस्लिम, जब हमारा जहाज अपनी ऊचाई पर पहुच गया तो खाने पीने की घोषणा हुयी ओर कुछ समय बाद खाना भी आ गया, मै शाका हारी हुं, लेकिन बीयर पी लेता हुं, लेकिन पास बेठे सज्जन के कारण मेने सिर्फ़ पानी ही पिया, ओर उन्होने कोला... फ़िर थोडी देर बाद एयर होस्टेज ने पुछा कि आप क्या पीयेगे( सभी से पूछ रही थी) अब मेरे दिल मै तो बीयर पीने की तीव्र इच्छा थी, लेकिन साथ बेठे भाई का ख्याल कर के मै चुप रहा, तो एयर होस्टेज ने उन से पूछा कि आप क्या लेगे... तो उन्होने एक डबल पेंग मंगवाया, बाप रे अब मेरे सब्र का बांध टुट गया ओर मेने माफ़ी मांग कर एयर होस्टेस से कहा कि अगर आप के पास यह वाली बीयर है तो मुझे एक बीयर ओर एक पेग दे दो( असल मै मैने बीयर देख ली थी) ओर मेरीआवाज सुन कर वो एयर होस्टॆज चहक ऊठी ओर बोली तुम श्री मान भाटिया हो ना? ओर मैने कहा तुम भी तो सविना हो जो हमारे डा० के यहां नोकरी करती थी, ओर फ़िर हम दोनो बहुत प्यार से मिले उस ने मुझे अपनी दोनो बाहों मै भर लिया, ओर बताया कि उस की जिन्दगी की यह पहली उडान है एयर होस्टल के रुप मे, ओर फ़िर दिल्ली तक मेरी खुब सेवा हुयी, ओर उस ने सभी से मुझे मिलवाया, ओर अपना अगला प्रोग्राम भी बताया, कहां मै बीयर पी कर सोने की सोच रहा था, ओर कहां सारी रात, सारे रास्ते उस से गप्पे मार कर निकली ओर पता भी नही चला कि कब दिल्ली पहुच गया.
घर आ कर मैने अपने घर मै सब को सारी बाते बताई, ओर जब अगली बार हम अपने डा० से मिलने गये तो वहां पता चला कि उस ने भी सब को बताया, ब्लांग मै मैने उस समय यह सब बाते इस लिये नही लिखी की मन बहुत उदास था
हां मुझे उस एयर होस्टेज ने पूछा कि जब आप मुझे पहचान गये थे तो पहले बुलाया क्यओ नही, तो मैने कहा कि जिन्दगी मै कई बार हमे एक ही सक्ल से मिलते जुलते लोग मिल जाते है, अगर तुम वो नही होती तो सोचती कि यह मेरे ऊपर लाईन मार रहा है, ओर मै यह नही चाहता था, बस इस लिये.
नाम
पुरानी यादे
30 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
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भाटिया जी ये संस्मरण तो बहुत बढिया रहा...लेकिन बगल में खडे इन गधे महाश्य का इस पोस्ट से कुछ ताल्लुक समझ में नहीं आया..तनिक स्पष्ट कीजिए :-)
ReplyDeleteभाटिया जी, हम तो कई को पीछे से धौल मार चुके मुरारीलाल के चक्कर में। बाद में पता चला वो मुरारीलाल नहीं था।
ReplyDeleteयह बात तो हम भी जानना चाहते है की गधा क्यों है यहाँ ?
ReplyDeleteअगर तुम वो नही होती तो सोचती कि यह मेरे ऊपर लाईन मार रहा है,
ReplyDeleteमैं कुछ नहीं कहूँगा
प्रश्न मेरा भी वही है जो वत्स जी का
ReplyDeletenice
ReplyDeleteभाटिया जी,बहुत बढिया स्मरण
ReplyDeleteलेकिन इन टिप्प्णी करने वालों से बचके।
जय टिप्पणी माता
हमारे उपर तो टिप्पणी लौटाने के लिए
मुकदमें की तैयारी हो रही है, टिप्पणी
लौटाने की धमकी दी जा रही है आप
यहां पर दे्खिए:)
वत्स जी की टिप्पणी से तो जरूर चेहरे पर हांसी आ गयी । अच्छा लगा संस्मरण शुभकामनायें
ReplyDeleteऐसा यात्रा वृत्तांत क्या और किसी का हो सकता है ? भाटिया साहब काहें जला रहे हो ?
ReplyDeleteवैसे एयर-पोर्ट पर सबकुछ बहुत महंगा होता है ,यह बात एकदम सही है ,इस ओर एयर -पोर्ट प्रबंधन को जरूर सोचना चाहिए / आपके मानवीय रिश्तों को बयां करती,इस यात्रा के संस्मरण के रूप में अच्छी प्रस्तुती के लिए आपका धन्यवाद /
ReplyDeleteसंस्मरण तो बढ़िया रहा..मगर यह ड्रा कौन है??
ReplyDeleteइस पोस्ट में आपकी सरलता झलकती है।
ReplyDeleteबढ़िया लगा ये संस्मरण ।
लेकिन कई सवाल रह गए ।
बहुत बढ़िया संस्मरण राज जी बढ़िया लगी यह घटना प्रस्तुति..धन्यवाद
ReplyDeleteबढिया संस्मरण।
ReplyDeleteबियर पुराण में मज़ा आ गया.... और आपको गले मिलने की बहुत बहुत बधाई..... वैसे आपने गधे की फोटो इसीलिए लगायी है न..... जो मैं समझ रहा हूँ.....ही ही ही ही ही ही ........ मज़ा आ गया इस संस्मरण में.........
ReplyDeleteभाटिया साहब,
ReplyDeleteअच्छा लगा। कमाल का वर्णन है।
बहुत सुन्दर संस्मरण राज जी! आपके इस संस्मरण को पढ़कर आपकी वो पुरानी पोस्टें भी याद आ गईं जो आपने उन दिनों लिखीं थीं।
ReplyDeleteआपने हिन्दी की ऐसी की तैसी कर दी है. क्या ब्लॉग भी इसी काम के रह गए हैं कि वहां पेशाब और शौचालय जाने जैसी बातें साझा की जाएँ ? कम से कम 'पूरा' को 'पुरा' लिखने जैसी गलतियाँ तो न करैं. गलत कहा तो माफ़ कीजियेगा... हिंदी की यूँ बुरी गत देख चुप न रह सका..
ReplyDeleteअच्छी विवेचना है!
ReplyDelete@ नवीन जोशी
ReplyDeleteजरा बतायेंगें कि हिन्दी की ऐसी तैसी कैसे हो गई है? जरा बताईये ब्लाग किसलिये है?
आप क्या समझते हैं, आपको हिन्दी आती है? अपनी इसी टिप्पणी में देख लीजिये "तो न करैं" या तो ना करें।
आपके ब्लाग पर गया था, आपकी हिन्दी देखने "पहाड की बेटी ने छुआ आसमान," वाली पोस्ट की शुरू की 2-4 लाईनों में ही कम से कम तीन गलतियां हैं। अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग तो थोक में करते हैं आप।
अब मैं भी कहता हूं कि - बुरा लगा हो तो माफ कीजियेगा।
प्रणाम
अजी यह गधा मेरा नही शायद ताऊ का है,घुमता घुमता मेरे पास आ गया, तो मैने सोचा इसे बांध लूं, कही ओर भटक गया तो...ओर बांधा इस लिये कि सभी को पता लग जाये कि यह मेरा खेत चर गया है, ओर जब तक ताऊ हरजाना नही भरेगा, यह यही बंधा रहेगा
ReplyDelete@ नवीन जोशी जी, क्या बात है, भाई आप की मेहरवानी होगी जरा हमे ट्यूशन ही पढा दे, ओर ऊठने बेठने का तरीका भी समझा दे, केसे किसी से बोले चाले....वेसे मेरा पाला बहुत से जोशियो से पडा है सभी आप जेसे ही सयाने है,धन्यवाद
वाह भाटिया जी,
ReplyDeleteमन खुश हो गया यह वाकया सुनकर.
जर्मन में "ड्रा" बोलते हैं, अब समझा.
ReplyDeleteबहुत ही रोचक संस्मरण....और आपने अपने सहयात्री का ख़याल करके बियर नहीं मंगवाया , यह बहुत ही प्रशंसनीय है.
ReplyDeleteभाटिया जी,
ReplyDeleteआप बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति हैं ये तो पता था ही आज ये बात और पुख्ता हो गयी...
अरे चलिए ऐसे ही कभी हम भी आपसे टकराते हैं कहीं, फिर देखता हूँ आप हमें पहचानते हैं या नहीं :)
ReplyDeleteक्या कहने भाटिया जी
ReplyDeleteवाह वाह !
जब मुलाकात होगी अपनी
तो शाम होगी हसीन...........
बीयर और नमकीन
अपना जादू दिखाएँगे
अपन ठहाके लगायेंगे
पुरानी जान पहचान और एक मुलाक़ात ...संस्मरण पढना अच्छा लगा ...पर गधे की पिक्चर लगाने का अर्थ समझ नहीं आया ...
ReplyDeletekarat karat abhyaas main aakhir safal hui blog per aane mein aur itna badhiyaa sansmaran padhne ko mila....shukriyaa raj ji
ReplyDeleteलाइन मारने वाली बात पे एक बात मै जोडना चाहूँगा कि हिन्दुस्तान की सभ्यता में सव्भाविक सकुचाहट रहती है | आदमी कितना भी उम्र दराज क्यों ना हो अपने चरित्र का हमेशा ही ध्यान रखता है
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