- श्री जी खुश थे कि श्रीमती जी सुबह सुबह मायके चली गई हैं और हफ्ते भर में आएँगी। अंतर सोहिल की पोस्ट पढ़ी और शाम होते ही वापस लौट आई।
श्रीमती जी की तो अपने कविवर से मिलकर वापसी भी गई। :-)
श्री जी के पास कम से कम एक दिन तो था। इंतजार क्यों किया।
अब नहाओ आधी बाल्टी पानी से ही।
हम तो ट्रेन में बैठे खिडकी से बाहर हाथ निकाले रहते हैं जी। आगे वाली खिडकी पर कोई कुल्ला भी करता है और दो-चार बूंदें हाथ पर गिर जाती हैं तो खुश हो जाते हैं कि बारिश आ गई। हा-हा-हा
- बस वर्षा का इन्तजार है!
हम्म्म्म ! चलो मेरी तो अभी शादी नहीं हुयी है मै इस लोचे से बचा हुआ हूँ ! हुरेर्र्र्रर्र्र
ReplyDeleteरत्नेश त्रिपाठी
of course
ReplyDeleteश्री जी खुश थे कि श्रीमती जी सुबह सुबह मायके चली गई हैं और हफ्ते भर में आएँगी। अंतर सोहिल की पोस्ट पढ़ी और शाम होते ही वापस लौट आई।
ReplyDeleteबस वर्षा का इन्तजार है!
ReplyDeleteवर्षा?? यह कोन है??अमित जी दिनेश राय जी की बात भी सुने.... आप की पोस्ट ने कबाडा कर दिया श्री जी का :)
ReplyDeleteजी मुझे को आक्षेप नहीं है आपकी पोस्ट से :)
ReplyDeleteश्री रूपचन्द्र शास्त्री जी की तरह हिम्मतवरों बनना चाहिये, देखिये कैसे उन्होंनें अपनी उनका नाम बता दिया।
ReplyDeleteअब आप सब लोग भी बताईये कि आपको किसका इंतजार है :-)
@श्री दिनेशराय द्विवेदी जी
ReplyDeleteश्रीमती जी की तो अपने कविवर से मिलकर वापसी भी गई। :-)
श्री जी के पास कम से कम एक दिन तो था। इंतजार क्यों किया।
अब नहाओ आधी बाल्टी पानी से ही।
प्रणाम
मतलब कवियों की शामत आनेवाली है ?
ReplyDeleteसमीर जी की कविता ने सभी को बोरा(पगला ) दिया है |बरखा एक महीने की छुट्टी पे है |
ReplyDelete