- इग्नोर करना तो बहुत आसन था रचना क्युकी इग्नोर करके तुम अपने खिलाफ हो रही अश्लीलता को ऊपर ना आने देती । निर्भीकता से लिखना आसन नहीं हैं बाकी घुघूती बासूती जी से सहमत हूँ । रही बात मीटिंग की तो जो चाय पानी करने की सामर्थ्य रखता हैं मीटिंग करा लेता हैं । यहाँ तो फ्री का खाना भी था ।
- @ सुमन जिंदल जी “रही बात मीटिंग की तो जो चाय पानी करने की सामर्थ्य रखता हैं मीटिंग करा लेता हैं । यहाँ तो फ्री का खाना भी था” तो इसमें आपको क्या दिक्कत है? अगर आप में सामर्थ्य है तो आप भी बुला कर देख लें…हम आ जाएंगे और अगर बस की बात नहीं है तो आप जब कहें…हम आपको बुलाने के लिए तैयार हैं …और हाँ…खाने का मेन्यू भी वही रखा जाएगा…जो आप चाहेंगी… (बस…उसे निर्विवाद एवं अनिवार्य रूप से शाकाहारी होना चाहिए)
- @ Suresh Chiplunkar जी “सुमन जिन्दल जी से सहमत हूं… उस वीर सपूत के चरण-कमल भी देखना चाहता हूं जो "निस्वार्थ भाव"(?) से ब्लॉगर मीट का खर्च उठाता है, हॉल का किराया, खाना-पीना, फ़ोन इत्यादि के खर्च का अनुमान लगा पाना मेरे जैसे निम्न-मध्यमवर्गीय के लिये बड़ा मुश्किल है भाई”… ============= आदरणीय सुरेश जी…आपके हिसाब से ‘वीर पुरुष' की जो परिभाषा है ..मैं खुद को उस खांचे में पूरी तरह से फिट पाता हूँ याने के सौ प्रतिशत उस श्रेणी के योग्य मैं खुद को मानता हूँ और राजी-खुशी से आपकी इच्छा पूरी करने को तैयार हूँ…(अरे!…वही चरण कमल के दर्शन वाली)… कहिये!…कब दर्शन करना चाहेंगे मेरे चरण-कमलों के?… अरे!…औपचारिकता भरे निमंत्रण को मारिये गोली…वो तो गैरों के लिए होता है और आप तो हमारे अपने हैं…अपना जब जी चाहे…तब बाअदब …मुलाहिजा हमारे आशियाने पे बिना दस्तक दिए ही दाखिल हो जाएँ …दरअसल!…क्या है कि हमारी कालबैल याने के घंटी पिछले कुछ दिनों से थोड़ा तंग कर रही है… और हाँ…जब भी आएं तो लगे हाथ ‘इसमें मेरा क्या स्वार्थ है?’ ये भी बताते जाएँ तो इस मूढ़ एवं परम अज्ञानी पर बड़ी कृपा होगी अब रही बात कुल खर्चे और सारे हिसाब-किताब की तो उसके लिए तो आप बिलकुल ही चिंता ना करें जी …एक डायरी सिर्फ इसी खातिर…इसी लिए मेनटेन कर दी जाएगी कि आप जैसे महानुभावों को इस सब में होने वाले खर्चे से भली-भांति अवगत कराया जा सके और इस सब से भी अगर आपकी तसल्ली ना हो तो सोहाद्र्पूर्ण ढंग से आपस में विचार-विमर्श करने के बाद किसी लाला के निर्वासित मुंशी या फिर वेल्ले बैठे किसी चार्टेड एकाउंटैंट का भी बंदोबस्त या जुगाड़ कर हिंदी ब्लोगजगत के इतिहास में कामयाबी के झण्डे को सफलतापूर्वक ढंग से राजी-खुशी गाड़ा जा सकता है
- @ रचना जी सुमन जिंदल जी को और Suresh Chiplunkar जी को लेकर आपको मेरी ये टिप्पणी कुछ तल्ख़ लग सकती है लेकिन पहले आप ये देखिये उन्होंने लिखा क्या है… ‘सुमन’ जी के हिसाब से वहाँ फ्री का खाना मिल रहा था …इसलिए सब वहाँ पर गए… और ‘सुरेश’ जी तो इनसे भी गए-बीते निकले जो आयोजक की ही मंशा पर ही संदेह जता रहे हैं कि इसमें राज भाटिया जी(आयोजक) का कुछ निजी स्वार्थ था… एक बार फिर से निवेदन कि हिन्दी ब्लॉगजगत के इस काले अध्याय को भूल कर हम नई सोच..नई स्फूर्ति के साथ…मिलकर आगे बढ़ें विनीत: राजीव तनेजा
- @ राजीव तनेजा साहब - बहुत बढिया जवाब दिया आपने, दिल खुश हुआ…। ना जी तल्खी-वल्खी कुछ नहीं, हमें तो आदत है ऐसे जवाब सुनने की…। बात एकदम साफ़ होनी चाहिये भाषा कैसी भी हो… इसलिये आपका जवाब सुनकर खुशी हुई। यह जानकर और भी अच्छा लगा कि भाटिया जी स्पांसर थे, ज़ाहिर है कि उनका कोई स्वार्थ नहीं हो सकता, लेकिन "निस्वार्थ" वाली बात हरेक पर फ़िट भी नहीं बैठ सकती। @ सतीश सक्सेना जी - आपकी एक और गुणवत्ता (ट्रेड यूनियन वाली) जानकर बहुत अच्छा लगा, अभी तक तो मैं आपको सिर्फ़ एक विद्वान, कवि और लेखक के रुप में ही जानता था… बाय द वे, "कड़वा" नीम भी होता है और करेला भी, और दोनों ही स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम माने गये हैं… :)
11/26/10
जो चाय पानी करने की सामर्थ्य रखता हैं मीटिंग करा लेता हैं
नाम
Antar Sohil,
अन्तर सोहिल,
शिकायत
34 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
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“समीर लाल (उड़नतश्तरी) “ यह नाम इस ब्लॉगजगत मैं किसी के तार्रुफ़; का मुहताज नहीं है . इनके अलफ़ाज़ "खुशियाँ लुटा के जीने का इस ढंग है ज़िंदगी " ही काफी है, इनके तार्रुफ़ ,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteभाई, रचना की पोस्ट से टिप्पणियां उठाकर लाये हो।
ReplyDeleteगया था अभी-अभी मैं भी वहां। युद्ध चल रहा है।
उस मीटिंग में और मीटिंग के बाद तो वहां मैं भी था। इसमें किसी को ललित से शिकायत है तो सभी को क्यों घसीटा जा रहा है?
मेरा यह संदेश रचना के लिये है।
bahut sunder ham sahamt hai aap ki baat se log kisi issue ko niji issue bana late hai samajh nahi aata hai.
ReplyDeleteaaise meet samay samay par honi chahiye .
बडा अजीब लगा ये सुन कर कि लोग केवल खाने पीने ही ऐसी जगह जाते हैं लेकिन कहने वाले ये भूल गये कि जितना खर्च कर वो जाते हैं उतने मे किसी फाईव स्टार होटल मे खा सकते हैं समझदार लोग इतनी बचकानी बात कह सकते हैं? आश्चर्य। शुभकामनायें।
ReplyDelete...धन्यवाद अन्तर सोहिल जी!...आप ने बहुत अच्छा किया कि इस पोस्ट में कुछ लोगों की मानसिकता जाहिर कर दी!..मैने ब्लोगर संमेलन में पहली बार हिस्सा लिया!..राज भाटिया जी वैसे भी हमारे फैमिली फ्रैंड है!...जर्मनी में हम लोग बहुतसी जगहों पर साथ साथ घुमें है!...अगर इस मिटींग का खर्चा मुझे वहन करने के लिए कहा जाता तो भी मुझे खुशी होती!..ऐसे में खर्च्रे की परवाह बहुत कम लोग करते है...आपसी प्रेमभाव और मेल मिलाप के लिए रखी गई गैदरिंग आनंददायी होती है!..किसी को भी अपने मन में किसी तरह की कोई कड्वाहट नहीं संजोनी चाहिए!
ReplyDeleteराज भाटिया जी और अन्तर सोहिल जी ने ऐतिहासिक कार्य किया है, उन्हें मेरी तरफ से और मेरे जैसे ही सोचने वालों की तरफ से हार्दिक बधाई। इसी प्रकार दिल्ली में अनिल जोशी जी ने समीर जी के सम्मान में जो गोष्ठी आयोजित की थी उसके लिए भी शुभकामनाएं। इन गोष्ठियों में जो भी परिश्रम पूर्वक पहुंचे उन्हें भी शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसाहित्य जगत में ऐसी गोष्ठियां प्रति सप्ताह होती रहती है, कभी किसी के घर पर भी होती है। अभी ब्लाग जगत में लोगों को लेखकीय व्यवहार का पता नहीं है कि जितना अधिक मिलेंगे उतना ही लेखन में निपुण होंगे, इसलिए ऐसे विवाद है। और विवाद भी उन्हीं लोगों की तरफ से अधिक आते हैं जिन्हें लेखन से कोई सरोकार नहीं है। इस प्रकरण को अब बन्द कर दे और निरर्थक ही लोगों को प्रसिद्ध ना करें। आप को और राज भाटिया जी सहित सभी लोगों को हार्दिक बधाई। मुझे स्वयं को राज जी से मिलने की इच्छा थी लेकिन मेरा दुर्भाग्य की मैं इस अवसर का लाभ नहीं उठा सकी।
प्रेम प्यार से बढ़कर कोइ स्वार्थ हो सकता है क्या इस मिलन का | लेकिन कुछ लोगो को ये पेम प्यार और मिलन भी खटकने लगता है |
ReplyDeleteइस आयोजन में न आ पाने का अफसोस है.
ReplyDeleteबाकी तो जो जैसा सोचे. हम भी एक नन्हा सा आयोजन कर रहे हैं जबलपुर में १ तारीख को.
आयोजन में चाय में पानी मिलाया जाएगा या पानी में चाय। स्पष्ट किया जाए।
ReplyDeleteकैनन का एस एक्स 210 : खरीद लूं क्या (अविनाश वाचस्पति गोवा में)
विश्व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय
अमिताभ बच्चन ने ट्रैक्टर चलाया और ट्विटर पर बतलाया
सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से
'ईस्ट इज ईस्ट' के बाद अब 'वेस्ट इज वेस्ट' : गोवा से
ऊंट घोड़े अमेरिका जा रहे हैं हिन्दी ब्लॉगिंग सीखने
पर मुझे कोई शिकायत नहीं है
और न रहेगी।
मैं हतप्रभ हूँ ...क्या कहूँ बस मनिकता की बात है .......पर ऐसे लोग सिर्फ आरोपों के सिवा कर ही क्या सकते हैं ...चलो छोड़ो ...ब्लॉगर मिलन का मजा किरकिरा हो जायेगा
ReplyDeleteमनिकता की जगह मानसिकता पढ़ा जाये
ReplyDeleteअपनी अपनी सोच है सबकी ..हालाँकि इस सोच पर आश्चर्य जरुर हुआ.स्नेह मिलन को खान पान से जोड़ा जाता है ...रोटी तो सबके घर में है.क्या कहें अब.
ReplyDeleteअजीत गुप्ता जी बिलकुल सही बात कह दी है ....किसी की सोच पर क्या कहा जा सकता है ...
ReplyDeleteमैं अपना जवाब तनेजा जी के कमेण्ट के जवाब में पहले ही दे चुका हूँ… कि "यह जानकर और भी अच्छा लगा कि भाटिया जी स्पांसर थे, ज़ाहिर है कि उनका कोई स्वार्थ नहीं हो सकता, लेकिन "निस्वार्थ" वाली बात हरेक पर फ़िट भी नहीं बैठ सकती…"
ReplyDeleteबात से बात जिस मुद्दे (यानी ललित जी की पोस्ट) से शुरु हुई और बढ़ी… उस पर ध्यान दें और कल्पना करें कि यदि ललित जी ने अपनी पोस्ट और द्विअर्थी टिप्पणियाँ तुरन्त हटा दी होतीं तो झमेला ही न हुआ होता… खामखा बात विषय से भटक गई…
ReplyDeleteलेकिन इसी बहाने अजय झा, सतीश सक्सेना जी की पोस्टें और ढेर सारी टिप्पणियाँ (इधर-उधर) पढ़ने मिल गईं…
अब तो ये प्रमाणित हो चुका है कि , अब जब भी ऐसे किसी ब्लॉगर बैठक पर आरोपों की बात होगी .....हमारा नाम ..पूरी बेइज्जती के साथ लिया जाएगा ..क्योंकि बैठक के बाद जूते खाने की परंपरा की शुरूआत हमसे ही हुई थी ,इसलिए आप ये समझिए कि आप भी कुनबे में आ गए हैं , देर सवेर सभी आएंगे आप किंचित भी परेशान न हों राज भाई ।
ReplyDeleteहां जाने क्यों सुमन जिंदल वाले कमाल के सक्रिय मगर ...अजीव टिप्पणी पात्रों की विवशता ये लगती है कि ये तो चाह कर भी किसी बैठक का प्रत्यक्ष हिस्सा नहीं बन सकते , इसलिए इन्हें कमियां बाय डिफ़ॉल्ट ही दिख जाती हैं , कई बार तो ब्लॉग बैठक की घोषणा से पहले भी ..चलिए आप आज से हमारे ."".पादुका पीट भ्राता"" हो गए ..तो उत्सव मनाया जाए
अरे नहीं कराता अमित भाई ...अरे हम कह रहे हैं ...हमरे बडके ताऊजी के पास एतना माल है ....कराते हैं , नहीं कराते , हमरे मामा है बिजनेस मैंन ...कराते हैं नहीं कराते , अरे कौनो मंत्री , अभिनेता , डाक्टर इंजिनियर कराता है नहीं करता है ...वो तो कोई हम आप सा ......मुन्नी झंडु बाम ....करा लेता है .....यार आखिर अपनी भी कुछ औकात है ...चाय पानी की सही ....
ReplyDeleteकिसी को पूरी तरह जाने पहचाने बगैर राय कायम कर लेना पूर्ण रूप से अनुचित है
ReplyDeletedabirnews.blogspot.com
कहते हैं --खाने बिना जिन्दगी क्या । और दोस्तों बिना खाना क्या ।
ReplyDeleteमेज़बान बनने के लिए बड़ा जिगर चाहिए ।
यदि हालत सामान्य होते तो हम भी रोहतक में होते ।
ब्लोगिंग को बिना बात का अखाडा नहीं बनाना चाहिए ।
नेकी कर दरिया में डाल
ReplyDeleteये है असली अंतर्जाल
रामराम.
मुझे दुःख होता है की ऐसे लोग ब्लोगिंग क्यों करते हैं जो ब्लोगरों के मिलने को चाय..खाना खाने इत्यादि भर मानते हैं ....मेरे ख्याल से ऐसे लोग सामाजिक प्राणी ही नहीं जो ब्लोगरों या कुछ इंसानों के एक जगह इकठ्ठा होने पर सवाल उठातें हैं .... ऐसे मानसिक रोगियों की वजह से इस देश में सामाजिक सरोकार के असल मुद्दों को अंजाम तक नहीं पहुँचाया जा रहा है ...दरअसल ब्लोगरों का मिलना विचारों का आदान प्रदान करने के साथ-साथ एक दुसरे को समझने का भी मौका देता है...ऐसे सम्मलेन हर माह होने चाहिए.......मैं तो दिल्ली से बाहर था नहीं तो मैं भी इस सम्मलेन में जरूर पहुँचता .......मैं तो चाहता हूँ की ऐसे सम्मलेन को हर माह आयोजित करने के लिए कोई आगे आये और हम सबसे हर महीने एक निश्चित राशी लेकर ऐसे आयोजन को सामूहिक स्तर पर आयोजित करे जिससे सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर हर माह बहस के जरिये ब्लोगिंग को सही मायने में सामाजिक सरोकार से जोरा जा सके........हाँ रचना जी से जुरा बहस दुर्भाग्यपूर्ण है....हम सबको ऐसे बहस से बचना चाहिए जो किसी महिला ब्लोगर को किसी भी प्रकार से दुःख पहुंचाता हो.....राज भाटिया जी की जितनी तारीफ की जाय वो कम होगी इस आयोजन को आयोजित करने के लिए.....राज भाटिया जी का यह प्रयास अनुकरणीय और वंदनीय है.......मुझे दुःख है और यह मेरा दुर्भाग्य है की मैं उनसे मिल नहीं सका....
ReplyDeleteअगर मैं कहूँ की जो खिलाने पिलाने की सामर्थ्य रखता है ब्लोगेर्स मीटिंग बुला लेता है तो क्या ग़लत होगा?
ReplyDeleteहाँ यह कहना अवश्य ग़लत है की लोग खाने पीने जाते हैं.
भाटिया जी, तुसी ताओ नि बात मान ले. बाकी सब बकवास.
ReplyDeleteउलाहनों से डर मत जाना!
ReplyDeleteब्लॉग मीटिंग बार-बार कराना!
चाय-पानी दे दो तो पुलिसवाला भी छोड़ देता है; ब्लागर क्या चीज़ है जी :) राज भाटिया जी को ब्लागरों के आवभगत के लिए बधाई। बस, यही गाते रहिए...याहू... चाहे मुझे कुछ भी कहे, कहने दो जो कहता रहे.... जंगली है वो :)
ReplyDeleteआज से अपना भी यही नारा होगा.....
ReplyDeleteनेकी कर दरिया में डाल
ये है असली अंतर्जाल
ये नहीं कि...
अरे पड़ोसी सड़ा बेचता
सबसे अच्छा मेरा माल।
ताऊ जी जिस दरिया की आप कर रहे हैं बात
ReplyDeleteवो ब्लॉग ही है, आप कितना ही डाल दीजिए
नेकी हैं सबकी टिप्पणियां, जिन्हें पोस्टों में डाला जाता है
मानेंगे आप भी कि
पोस्ट से कम
पर टिप्पणियों से ज्यादा उबाल आता है
उबल उबल कर सब
फिल्टर हो जाता है
आजकल हिन्दी ब्लॉगिंग में फिल्टर काल चल रहा है
दिल्ली में जब एक बार ऐसा आयोजन अजय जी ने किया था तो ऐसी ही उट पटांग बात नीशू तिवारी ने की थी ..बड़ी मजामत हजामत हुयी थी ....अब ये महोदय व्यर्थ की बात कर रहे हैं ..कभी खुद तो कुछ जीवन में किया नहीं !
ReplyDeleteअमित जी आप अपने कर्म मे रत रहिए। अच्छा काम कर रहे हैं आप। हर अच्छे काम की आलोचना तो होती ही है। इससे जरा भी विचलित न होइए। आपके प्रशंसकों की संख्या आलोचकों से कहीं ज्यादा है।
ReplyDeleteमुझे लगता है आप आवेशित होकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। किसी की गलती को सार्वजनिक करना उचित नहीं है। क्या आपसे कभी टंकण की गलतियां नहीं होतीं? इस तरह की भूल(typing error) कोई अक्षम्य अपराध नही है और न ही इससे किसी की विद्वता या बौद्धिकता पर प्रश्न्चिन्ह लगता है। मुझे अच्छा नहीं लगा कि आप विषय से इतर व्यक्तिगत आक्षेप कर रहे हैं। प्रतिक्रियावादी न बनें, विचलित न हों और आत्मसंतुलन रखें।
आपका शुभेच्छु
सोमेश
@ आदरणीय सोमेश सक्सेना जी
ReplyDeleteआपका कहना उचित है, मैनें आवेश में आकर यह पोस्ट लिख डाली। और टंकण की भूल से किसी की विद्वता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन मैनें इनकी प्रोफाइल देखी तो यह किसी फर्जी आईडी की तरह दिखती है। पोस्ट ग्रेज्युएट का हिन्दी शब्द में गलती करना गौर करने लायक है। इनका अपना कोई ब्लॉग भी नहीं है।
क्षमाप्रार्थी हूँ, कोशिश रहेगी कि भविष्य में इस तरह प्रतिक्रियावादी ना बनूं।
प्रणाम
सुमन नारी ब्लॉग कि सम्मानित सदस्य हैं । केवल नारी ब्लॉग पर लिखती हैं । मे उन्हे व्यक्तिगत रूप से नहीं मिली हूँ । वो हिंदी मे लिखना चाहती थी ब्लॉग पर लेकिन अपने नाम से नहीं । मुझे से पूछा , क्युकी मुझे तकनीक कि जानकारी हैं मैने एक आईडी जो मेरे पास था और जिसका उपयोग मे नहीं कर रही थी उनको उपलब्ध कर दिया क्युकी मे चाहती हूँ ज्यादा से ज्यादा महिला अपने विचार रखे । उन्होंने तक़रीबन ६ महिना मेरी अनुपस्थिति मे नारी ब्लॉग का मोद्रशन भी किया हैं । उनकी उपस्थिति आप को मात्र नारी ब्लोग्पर दिखेगी ।
ReplyDeleteआप आते हैं कि वो हिंदी कि ज्ञाता हैं और हिंदी सही नहीं लिख पाती । नेट पर हिंदी लिखना टंकण करना इतना आसान नहीं हैं और बहुत ब्लॉगर गलती कर ही जाते हैं । आप के इस शिकायत हैं ब्लॉग पर कितने आलेख दिखा सकती हूँ जिनमे टंकण कि गलतियां हैं । सिंह को सिंग ना जाने कितने ब्लॉगर लिख जाते हैं ।
और फर्जी ब्लॉगर / प्रोफाइल कि बात करे तो बहुत से ब्लॉग गिना सकती हूँ जो बनते और मिट ते रहते हैं लेकिन इनसे अनाम कमेन्ट जो सार्थक भी होते हैं उनकी importance कम नहीं होती ।
नारी ब्लॉग खुद खुद एक स्नेह सम्मलेन करवा चुका हैं । क्या आप को विश्वास होगा कि बहुत से ब्लॉगर इन मीट मे इसलिये नहीं आते हैं क्युकी उनको लगता हैं कभी ना कभी उनको भी "खिलाना पिलाना पड़ेगा " अगर वो खाए पीयेगे । राज भाटिया जी सक्षम हैं ५००० - १०००० रूपए एक रात मे खर्च करने मे सब नहीं हो सकते । तो उनकी पार्टी मे वही जायेगे जो रिटर्न मे इतना खर्च करने कि सामर्थ्य रखते होगे । और जो रिटर्न की सामर्थ्य के बिना इन पार्टियों का मज़ा लेते हैं उनको क्या कहा जाता हैं आप को कुछ दिन मे दिख जाये गा
दिल्ली मे मीटिंग मे बालेन्दु जी ने कहा था कि पिछले एक साल में ब्लोगिंग नीचे आगई हैं आप कभी सोच कर देखियेगा कि पिछले एक साल से पहले कितनी ब्लॉगर मीट हुई हैं । कहीं ऐसा तो नहीं हैं इस मिलने मिलाने , पीने पिलाने मे ब्लोगिंग खत्म हो रही हैं । क्यों पुराने लोग जो सक्रिय थे ख़ास कर महिला { क्युकी मे महिला आधरित लिखती हूँ इस लिये } आज सक्रिय नहीं हैं ।
आप शायद नारी ब्लॉग नहीं पढते हैं { पढने लायक नहीं हैं शायद } वर्ना ये ना लिखते सुमन का ब्लॉग नहीं हैं । मैने उनसे कह कर उनके प्रोफाइल पर नारी ब्लॉग दिखने लगे ये सुविधा up करवा दी हैं ये गूगल कि तकनीक हैं । नारी ब्लॉग पर बहुत सी सदस्य हैं जो अपने डेश बोर्ड पर नारी ब्लॉग नहीं दिखाती हैं ।
सादर प्रणाम
@ रचना जी मै वेसे किसी भी बात को तुल कभी नही देता, यह सब लेख मैने पढे ओर मुझे दुख ही हुया कि क्यो लोग यहां एक दुसरे की टांग खीचते हे, इन सब मे मैने यही निचोड निकला है कि आप के कंधे पर बंदुक रख के किसी ने अपना काम कर दिया,अब आप मेरे पाराया देश वाले ब्लांग पर जा कर देखे हर पोस्ट के नीचे हमेशा लिखा होता हे रचना के बारे, इस का मतलब आप के बारे नही, मेरी पोस्ट के बारे होता हे, इस बात को एक बच्चा भी समझ सकता हे, आप भी समझती हे, लेकिन आप को भडकाया हे, वर्ना आप इतनी ना समझ नही, ओर आप भडक उठी,विचार ना मिलने पर भी मै आप की इज्जत करता हुं, आप के बारे मैने कभी गंदे या बेहुदा शव्द नही प्रयोग किये, लेकिन यह बाते पढ कर मुझे बहुत दुख हुया, इअतने साल ब्लांगिग मै रह कर भी हम ने कुछ नही सीखा,
ReplyDeleteदुसरी बात ( सुमन नारी ब्लॉग कि सम्मानित सदस्य हैं ।) मेरे लिये तो यहां सभी सम्मानित लोग हे, मै ठहरा प्रदेशी क्यो अपनो से दुशमनी लूं, फ़िर यह कोई पार्टी नही थी, यहां लोग दुर दुर से आये शायद उन का खर्च २,४ हजार भी हुआ होगा, निर्मला जी से मिला तो लगा मेरी मां मेरे सामने खडी हे, ओर वो भी किस तरह मेरे को मिलने आई जब कि उन की तबियत भी ठीक नही थी, संगीता जी से मिला बिलकुल ऎसा लगा जेसे हम बचपन से एक दुसरे को जानते हे, वो भी कितनी दुर से आई, योगेंदर जी, अलबेला जी, अपना अपना प्रोगराम छोड कर आये, खुश दीप जी, राजीव जी, अजय झा जी ओर अन्य मित्र क्या अपने घर नही खाते, लेकिन इन सब को एक प्यार खींच लाया, केवल राम जी, राठोर जी, नीरज जी अजी ओर्भी बहुत से लोग हजारो मिल दुर से आये, कोई सुबह ऊठा तो कोई रात को चला होगा, क्या इन्हे दो रोटियो कि ही चाह थी ? नही इन्हे मिलने की चाह थी.इन्हे सब का प्यार खींच लाया, ओर इस प्यार के आगे पेसा कुछ नही, इस लिये सुमन जी को कुछ सोच कर ही लिखना चाहिये, अगर हम किसी को इज्जत नही दे सकते तो हमे बेइज्जत करने का भी हक नही,
वेसे यह ब्लांग मिलन अब बंद नही होगा यह तो आगे ही आगे बढेगा, जो एक बार इस मै आया वो बार बार आयेगा, इस मै कोई बडा नही कोई छॊटा नही कोई अमीर नही कोई गरीब नही, यह तो एक परिवार बनता जा रहा हे, इस मै कुछ गलत भी हे जिन्हे हम ने सहना भी हे, उन्हे दुर भी कर सकते हे,अगली बार मै अपने बीबी बच्चो के संग आऊंगा तो इस से भी बडा मिलना होगा, इस मिलन मे देखे जो लोग गंद्दो पर सोते हे वो मेरे यहां फ़र्श पर सोये, जिन के घरो मे नोकर काम करते हे उन्होने मेरे यहां बरतन भी साफ़ किये चाय भी बनाई.... इस मै कोई लालच नही बस प्यार था, जनानिया एक जगह आप ने इस शव्द के बारे भी लिखा हे तो पंजाबी मे जनानिया कोई बुरा शव्द नही जहां बहुत सी महिल्ये होती हे( जिस मै मां बहन भाभी ओर अन्य महिलाये तो वहा जनानिया शव्द ही प्रयोग किया जाता हे.
आगे मै अभी टिपण्णी नही कर पाऊंगा क्योकि मेरा लेपटाप रिपेयर के लिये जा रहा हे.
लेकिन आप को भडकाया हे, वर्ना आप इतनी ना समझ नही, ओर आप भडक उठी,विचार ना मिलने पर भी मै आप की इज्जत करता हुं, आप के बारे मैने कभी गंदे या बेहुदा शव्द नही प्रयोग किये,
ReplyDeletejee mujh kisi ne nahin bhadkayaa thaa kam padhii likhee hun par majaak aur ashleeltaa me bhedh kar saktee hun jab tak wahaan diwarthi kament aaney nahin shuru huae maene koi aaptti nahin ki aur dusri baat maene 24 ghantey post aane kae baad wait kiyaa ki koi us par aaptti darj karae
जनानिया एक जगह आप ने इस शव्द के बारे भी लिखा हे
maene जनानिया shabd par koi aaptti nahin ki thee apptti thee us kament par kehaa gayaa thaa
मूंछ वाले कविराज काहे रचना रचना पुकारते हो असली रचना कही सुन ना ले | और आपकी वो तस्वीर सब भाभीजी को भेजने वाला हूँ जिनमे आप जनानियो के पास बैठ कर बहुत हंस रहे है |तब आपको रचना याद आयेगी |
is par maene kehaa क्या सब जनानिया जो मीट मे थी उन पर बाद मे क्या कहा जाता हैं वो भी पढ़ ले । माँ कि उम्र हो या बेटी कि हैं तो सब जनानिया ही
soch kar daekhiyegaa aap bhi
rachna shabd jab tak sangya kae rup mae aur blogger kae liyae nahin prayukta hota haen tab tak mujeh bhi pataa haen ki wo mare liyae nahin haen
हा हा हा हा हा हा हा
ReplyDeleteपूरा जवाब तो मैं कल रात तक अपने हिसाब से अपने ब्लॉग पर ही लिखूंगा इस टुच्ची बात का, क्योंकि मुझे तुरन्त रवाना होना है सूरत के लिए........लेकिन इत्ता तो बता ही दूँ की मैंने न तो वहां चाय पी ( क्योंकि चाय थी नहीं इसलिए कोफ़ी पी )और न ही खाना खाया फिर भी राज भाटिया से ये मुलाक़ात मुझे कम से कम बीस हज़ार रुपये की पड़ी............
हाँ बाद में रात को तो खाना भी खाया भी और पीना पीया भी...........लेकिन वो सब तो हमें घर में भी मिलता है यार !
हमारे आंगन में तो रोज़ नये सुमन खिलते हैं .....हम तो वहां केवल राज जी के निमन्त्रण का मन रखने गये थे......
शेष कल....