प्रचार वाली बात लिखने के लिये मैं एक बार फिर से क्षमा मांगना चाहूंगा।
2/7/11
क्षमा बडन को चाहिये
@ आदरणीय श्री शिवम मिश्रा जी
आपकी टिप्पणी से मस्तिष्क के पेंच खुल गये हैं। मैंनें उक्त लिंक पर जाकर नहीं देखा। आपका कार्य सराहनीय है और इसमें निरन्तरता बनी रहे, ऐसी आशा रखता हूँ। हालांकि आदरणीय डाO टी एस दराल जी ने बात साफ कर दी थी कि थोडा पोस्ट के बारे में भी कमेंट कर दें तो अच्छा लगेगा। मैं नहीं मानता कि मैनें किसी दूसरे की रचना को अपने ब्लॉग पर पब्लिश किया है तो बेहतरीन लेखन के लिये मैं हकदार हूँ। खैर आपको खेद हुआ है तो, उसके लिये आपसे हाथ जोडकर क्षमाप्रार्थी हूँ।
मैनें आपका नाम लेकर पोस्ट जरुर बना डाली है, लेकिन दूसरों तक भी पहुँचाने के लिये और यकीन मानियेगा इससे टिप्पणियों में विविधता जरुर आयेगी।
आपने तो मेरी ही बात को बदल कर कह दिया :)
सही कहा जी श्री शिवम मिश्रा जी का ब्लॉग वार्ता पर चर्चा वाला काम और इतनी बढिया तरीके से मुझे समझाना वेरी नाईस ही तो है और मेरा मेरे मन में आये किसी विचार पर सभ्य तरीके से सवाल करना भी मैं नाईस ही मानता हूँ।
बिल्कुल पोस्ट ही है जी, पत्र बिल्कुल नहीं है। श्री शिवम मिश्रा जी को सम्बोधित करके ये बात मैनें सभी के लिये कही है कि एक जैसी टीप पढकर (और पोस्ट से सम्बन्धित एक लाईन भी नहीं) कैसा महसूस हो सकता है। उन्होंने मेरी शिकायत का उत्तर बेहतर और विस्तृत दिया है, फिर भी एक प्वायंट ऐसा छूट गया जिस पर किसी ने भी कुछ नहीं कहा।
प्रचार वाली बात लिखने के लिये मैं एक बार फिर से क्षमा मांगना चाहूंगा।
प्रचार वाली बात लिखने के लिये मैं एक बार फिर से क्षमा मांगना चाहूंगा।
आपकी दूसरी बात उम्मीद से दुगना वाली तो अब भी हजम नहीं हो रही है जी। और होगी भी नहीं कहते हैं ना …… को घी हजम नहीं होता। इसमें …… की गलती नहीं होती घी खिलाने वाले की होती है। और हाँ इसके लिये अहसान का टोकरा भी …. के सिर पर नहीं रखना चाहिये। बात बिल्कुल स्पष्ट हो गई है जी और आशा करता हूँ कि आपका आशिर्वाद हमेशा बना रहेगा।
अजय झा जी दिल से एक बात कहना चाहता हूँ कि आपसे संवाद बहुत मजेदार होता है और आपकी टिप्पणी सबसे उम्दा होती हैं। इस टिप्पणी को पाकर बहुत अच्छा लगा। उपरोक्त दो खट्टी लाईनों के लिये आप भी क्षमा कर दीजियेगा छोटा भाई या मूढ समझकर। मिटा भी सकता हूँ, लेकिन अब लिख दिया तो लिख दिया। मिटाने पर खुद से ही मुँह छिपाना होगा।
आदरणीय शिकवे-शिकायत भी खुद से बडों को ही की जाती है। और अग्रणी ही उचित ढंग से समझाते हैं और समाधान करते हैं।
बिल्कुल, मैं भी उत्साहित हो (गया) जाता हूँ। मैनें कब कहा कि इसमें कोई बुराई है? लेकिन एक दो शब्द पोस्ट विषय पर भी हो तो……………॥
मेरा भी ऐसा ही है जी, अगर मुझे लगातार चार पोस्ट बहुत पसन्द आती हैं तो चारों पर बेहतरीन ही लिखूंगा। क्योंकि कई बार अन्य शब्द ही नहीं मिलते कहने के लिये और मेरा शब्दकोष तो बहुत छोटा है।
अन्तर सोहिल का प्रणाम
नाम
Antar Sohil,
अन्तर सोहिल
12 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
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बीती ताहि बिसार दे....!
ReplyDeleteकहते हैं न कि अंत भला तो सब भला ।
ReplyDeleteए हो महाराज बात ई है कि हम आप दुनु जन को जानते हैं इसलिए ई भी समझते हैं कि आखिर हैं तो हम आप दुनु जन के बडके भईया तो ई तो लिखना ही था । देखिए अपना तो एक ही फ़ंडा है ...नीयत साफ़ और स्पष्ट होनी चाहिए । और जाहिर है कि वो आप दोनों की ही एकदम झक्कास है । हां आपकी इस बात से जो संदेश आप देना चाह रहे थे वो यकीनन मिल गया होगा सबको । और हां आप लोग तो हमारे भीतर बसते हैं भाई ..सो बचके जाईएगा कहां ...आखिर दो मन भी हों तो ..रहेंगे तो एक शरीर के अंदर ही ..। इसलिए तो भगवान ने दो हाथ दिए हैं ..ताकि दोनों बाहों में दो भाईयों को एक साथ समेट कर गले लगा सकें । शुभकामनाएं ...एकदन झन्नाट फ़न्नाट और सन्नाट रहिए । और लास्ट में कहिए ..भईया जी ..इश्माईल ..
चलिये अन्त भला तो सब भला वाली ही तर्ज़ पर इस बात का समापन किया जाए...
ReplyDeleteवाकई भईया जी..
ईश्माईल....
चलो इसी बहाने शिकायत तो दूर हो गयी
ReplyDeleteऔर एक दुसरे को समझने का मौका भी मिल गया
स्याणे माणस की यो ही पिछाण :)
ReplyDeleteराम राम
भाई को वैवाहिक वर्षगांठ की बधाई दो , और बाकि सब भूल जाओ ।
ReplyDeleteशिवम् मिश्रा जी बड़े ह्रदय वाले है !
ReplyDeleteआपकी शिकायत तो जायज़ थी बस उद्धरण थोडा ठीक नहीं निकला. लेकिन समझदारों को इशारा काफी है.
ReplyDeleteअब सब ठीक हे जी
ReplyDeleteवो क्या कहते हैं ना
ReplyDelete"all is well" happy ending
regards
मुझे पूरी बात तो पता नही लेकिन एक बार किसी और चिठा चर्चा मे अपने विचार दे कर खूब गालियाँ खा चुकी हूँ। अब तो मूक दर्शक बन कर देखते हैं । जरा इस पोस्त का पिछला संद्र्भ भी बता देते लिन्क दे कर। शुभकामनायें।
ReplyDelete" जो साज़ से निकली है ... वो धुन सब ने सुनी है ... जो साज़ पर गुजरी है ... वो किस दिल को पता है !? "
ReplyDeleteयह शेर हम दोनों पर ही लागू रहा आपकी पिछली पोस्ट के बाद से ...
सच कहूँ तो आपकी पोस्ट के बाद से ही मन बेहद खिन्न हो गया था ...क्यों कि केवल एक गलतफहमी के कारण यह सब हुआ ... गलती किसी की ... बात यह नहीं थी ... बात थी संचार के आभाव की ... ना मेरे बारे में आप कुछ जानते थे ना मैं आपके बारे में ... पर अब ऐसा नहीं है और बहुत जल्द मुलाकात होगी इसी उम्मीद के साथ ... फिर मिलते है !