1/13/10
उलझन सुलझ गयी
आप सबको अन्तर सोहिल का प्रणाम
कल की उलझन को सुलझाया है जी, उन्होंने जो सबकी उलझन सुलझाते हैं, यानि अपने वकील और कानूनी सलाहकार श्री दिनेशराय द्विवेदी जी ने। उन्होंने आते ही एकदम सही बताया कि दुकानदार ने तीन-तीन पैसे के तीस सिक्के दे दिये।
श्री रविसिंह जी ने कहा - "आपके दादाजी के जमाने में इकन्नी चला करती थी जो छह नये पैसे की होती थी. आपके दादाजी को दुकानदार ने 15 इकन्नी दे दीं, यानी कुल नब्बे पैसे... इन इकन्नियों से आप चालीस पैसे नहीं बना सकते.."
लेकिन श्री मनोज कुमार जी ने उनकी बात गलत साबित कर दी - "कि उस समय इकन्नी सवा छह पैसे की होती थी"
पच्चीस पैसे = चार आना
वैसे उससे भी पहले जब एक नया पैसा (सिक्का) नही जारी हुआ था, तब इकन्नी चार पैसे की भी होती थी।
श्री जी के अवधिया जी मुझे नही लगता था कि आप भी उलझ जायेंगें।
डाO टी एस दराल जी ने उस समय में ही अट्ठनियों का चलन बंद करवा दिया जी।
सुश्री रेखा प्रहलाद जी ???????????? से काम कैसे चलेगा। (इतनी हैरत क्यों)
आदरणीय उडनतश्तरी जी का कमेंट हमेशा की तरह जोरदार पंच था। एक बार फिर पढ लें - "लाला क्रेडिटिबिलिटी चैक कर रहा होगा दादाजी की...कि बड़ा नोट रखे हैं कि नहीं...हमें नहीं पता..अंदाज ही तो सब लगा रहे हैं."
श्री पी सी गोदियाल जी ने तो लाला को ही पागल बता दिया और श्री महफूज अली जी लाला को झूठा बताते हैं । अपने आदरणीय ताऊ जी कहते हैं कि मैं ही वो दुकानदार हूं। अगर ताऊ जी दुकानदार होते तो सचमुच, दादाजी को बाकी पैसे वापस नही मिलने वाले थे। हा-हा-हा
नाम
Antar Sohil,
अन्तर सोहिल,
उलझन,
पहेली
21 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
Note: Only a member of this blog may post a comment.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बधाई सबों को .. उलझन जो सुलझ गयी सबकी !!
ReplyDeleteउलझन सुलझ गयी!बधाई !
ReplyDeleteहाँ जी, यह पुराने और नये पैसों वाली बात तो आ ही नहीं पाई दिमाग में, बचपन में हमने भी अधन्ना, इकन्नी, दुअन्नी, चवन्नी, अठन्नी आदि का प्रयोग किया है। रुपया आना पैसा का रुपया और (नये) पैसे में परिवर्तन हमारे देखते में ही हुआ है। बचपन में हमें जेबखर्च के रूप में एक पुराना पैसा ही मिला करता था रोज। त्यौहारों में ही एक आने से चार आने तक मिल पाते थे हमें। कुछ समय तक पुराने सिक्के और नये सिक्के साथ साथ चलन में रहे थे। एक आने को छः पैसा माना जाता था और एक चवन्नी को पच्चीस पैसे। जब हम एक चवन्नी देकर दो आने का सामान खरीदते थे और दुकानदार वापस बारह नये पैसे देने लगता था तो हम झगड़ भी पड़ते थे उससे और एक नया पैसा देने के लिये।
ReplyDeleteद्विवेदी जी को बधाई उलझन सुलझाने के लिये।
श्री दिनेशराय द्विवेदी जी को बहुत बहुत बधाई, बाकी यह पेसे हम ने भी देखे है, जब हम छोटे थे तो हमे तांबें वाले पेसे आना दुयन्नी ओर छोटा पेसा, छेद वाला पेसा दिखते थे ओर जेब खर्ची कभी कभार मिलता था दो पेसे या तीन पेसे, ओर तीन पेसो मै चाट का डोना ओर इमली आ जाती थी एक पेसा फ़िर भी बच जाता था, बाकी अवधिया जी से सहमत है
ReplyDeleteभाई हम तो कल चिल्लड़ गिनने आ नहीं पाए !! आज गिनी गिनाई मालुम करने आ गए दिनेशजी को बधाई !!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा कि उलझन सुलझ गई....
ReplyDeleteउलझन सुलझ गयी!!बहुत ही रोचक!
ReplyDeleteमैं तो इस लिए हैरान थी कि दूकानदार सिर्फ १० पैसे के लिए क्यों कर रहा है हमे परेशान!
हम तो यह सोच कर इधर आये थे कि अगर अभी भी मामला अटका होगा तो अपनी तरफ से ४० पैसे देकर टंटा खत्म करवा देंगे मगर यहाँ सब निपट गया है. शुभ है.
ReplyDeleteचलो मसिं दो दिन आ नहीं सकी तो मेरे आने से पहले ही सुलझ गयी बधाई लोहडी की शुभकामनायें
ReplyDeleteha..haa.. sameerji 40 paise le kar aaye the!!!
ReplyDeleteएक एक पैसे के चालीस सिक्के भी दे सकते थे।
ReplyDeleteपर खैर उनकी मर्ज़ी।
हम तो खुश हैं की उलझन सुलझ गयी।
चलिए सुलझी तो,बधाई.
ReplyDeleteलोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआखिर लोहड़ी की रेवड़ी, फुल्लाँ और मूंगफली मिल ही गई। पडौस में स्व. डाक्टर रतनलालजी शर्मा साहब के अमरीका में पोता हुआ था। वहाँ डाक्टरनी भाभी ने लोहड़ी सुलगाई है। कोई हल्ला नहीं हुआ तो हमने जा कर दिया और दोनों हाथों को भर लाए। यहाँ दफ्तर में बैठ कर खा रहे हैं।
ReplyDeleteसब को लोहड़ी की बधाई!
कल मिलते हैं बड़ी सँकराँत पर।
चलिए उलझन सुलझी तो सही...
ReplyDeleteआप सब को लोहडी ओर मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाऎँ!!!
badhai aapaki uljhan sulajh gaye..:)
ReplyDeleteधत तेरे की ...!
ReplyDeleteमैंने न जाने कितने ३ पैसे के सिक्के खर्च किये हैं इन हाथों से मगर मौके पर एकदम भूल गया. लगता है दिमाग कुछ ढीला हो गया है अपना.
भाई आज ही पहुँचे हम तो इस पोस्ट पर ......... जब सब के जवाब आ गये ........ पर दोनो पोस्ट को पढ़ कर मज़ा आ गया भाटिया जी .........
ReplyDeleteयह सवाल बहुत मजेदार रहा जी.
ReplyDeleteरामराम.
... बहुत खूब, रोचक पहेली !!!
ReplyDeleteउलझन सुलझ गई सबसे बढ़िया बात है...
ReplyDelete