12/28/10
तिलयार तिलयार तिलयार : अन्तर सोहिल
हंगामा मचा रखा है, इस मीट के नाम पर। किसी के कहने से ही पोस्ट लिखी जाती है और फिर किसी के कहने से मिटा भी दी जाती है। (आधी अधूरी पोस्ट, बिना टाईटल की) "समाज मे स्थापित मानदंडो मे एक ये भी था की स्त्री को पुरुष को कुछ भी समझाने का अधिकार नहीं हैं । लेकिन आज ऐसा नहीं हैं।" आपकी ये लाईनें सही नहीं है। स्त्री द्वारा पुरुष को समझाने का अधिकार पहले भी था और अब भी बिल्कुल है। मुझे आज तक मेरी माँ और बडी बहनों द्वारा ही समझाईश दी जाती रही है और हम सुनते (अब पत्नी की भी) भी हैं और समझते भी हैं।
एक बात पक्की है कि ये ब्लॉगर मीट सचमुच सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरने के कारण सभी ब्लॉगर मीट से सुपरहिट हो गई। :-) जो है बदनाम उसका भी बडा नाम है। लेकिन एक बात सोचने वाली है कि इस मीट को बदनाम करने के लिये कोई साजिश तो नहीं है या किन्हीं खास 2-3 ब्लॉगर से व्यक्तिगत वैचारिक रंजिश के कारण ऐसा किया जा रहा है। किसी भी ब्लॉगर मीट के बाद कोई अपनी व्यक्तिगत शाम क्या खा-पीकर या एन्जॉय करके गुजारता है। उसपर क्यों इतना बवाल मचाया जा रहा है। जब हम ब्लॉग में अपने दैनिक अनुभव भी लिखते हैं तो क्या बुरा किया, जब मैं अपने दारु पीने की बात को भी सबको बता रहा हूँ। "थोडी सी जो पी ली है, चोरी तो नहीं की है" मैनें खुद को छुपाया नहीं, उघाडा है। मैनें तो स्वीकारा है कि मैं ये कर्म भी करता हूँ, और लिखता भी हूँ। दूसरों की तरह ना चेहरा छुपाये हूँ , ना अपनी कमियां और ना अपने दिल का कालापन। वर्ना यहां तो मुंह में राम बगल में छुरी और नकाब पे नकाब लगाये फिरते हैं लोग। क्या लिखना है यह भी उन्हें दूसरे लोग बताते हैं या खुद ही दूसरे नाम या आईडी से पोस्ट लिखते हैं।
आपको कु्छ ब्लॉगर्स का पीना-पिलाना दिखाई दे गया और वो बुरे हो गये। लेकिन ईमानदारी से कहियेगा क्या ये आपके लिये पहले से ही बुरे नहीं थे क्या? आईये रोहतक, मैं आपको उस औरत रेखा से मिलवाता हूँ, जिसने हम पीने-पिलाने वालों के लिये रात 11-11 बजे तक रोटियां बनाई हैं। उससे पूछियेगा कि उसने इन ब्लॉगरों में अपने भाईयों को नहीं देखा है क्या? वो जवाब देगी आपको। जब हम पी रहे थे और हमारे लिये खाना बनाती थी तो क्या उसे हमने उनके सगे भाईयों से कम स्नेह दिया। मैं पीने के बाद रात को रेखा को उसके घर तक छोडने जाता हूँ तो क्या वो एक बुरे अनजान आदमी के साथ डरी हुई जा रही थी या एक भाई के साथ जैसा फील कर रही थी। अलबेला जी ने रेखा के बेटे के ऑप्रेशन के लिये हर संभव सहायता और आर्थिक खर्च देने का वायदा किया है। और ये कहा था कि एक भाई अपनी बहन की मदद करना चाहता है। आईये और पूछिये उपरोक्त सवाल रेखा से। उसके बाद ईमानदारी से लिखियेगा अपनी पोस्ट बिना किसी रंजिश को दिल में रखकर। एक तिलयार मीट तिलयार मीट चिल्लाने से अच्छा है कुछ गालियां ही दे कर अपनी भडास निकाल लीजिये।
हर तरह के लोग हैं, दुनिया में। सुरापान के बाद भी हम होश में रहते हैं और आप जैसे बिना पिये भी नशे में बके जाते हैं। जय हो तुम्हारे विचारों की।
नाम
Antar Sohil,
अन्तर सोहिल
7 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
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समय तेजी से बदल रहा हैं । कभी स्त्रियों को निरंतर समझाया जाता था की उनके लिये कौन सा आचरण सही हैं और कौन सा गलत । समाज मे स्थापित मानदंडो मे एक ये भी था की स्त्री को पुरुष को कुछ भी समझाने का अधिकार नहीं हैं । लेकिन आज ऐसा नहीं हैं ।
ReplyDeleteइस लिंक को देखिये जरुर । इस पर आये कमेन्ट भी देखे । कुछ संबधित लिंक हैं
१तिल्यार, तिल्यार की बार और तीन यार
२रोहतक ब्लॉगर मिलन के बाद ब्लॉग पर अपनी बाते लिखना और चित्र डालना सही हैं लेकिन मदिरा पान करना और उसको ब्लॉगर मीट कह कर ब्लॉग पर देना कितना सही हैं ??? ख़ैर सही हो ना हो हम कौन होते हैं समाज की चिंता करने वाले । हम तो लिखते भी कम ही हैं और........
ये जो लिखा हुआ है ये मैंने नही लिखा है एक आधी अधूरी पोस्ट का हिस्सा है | जिसके बारे मे आप बता रहे है | गलत बात हमेशा गलत ही रहेगी भले ही सौ आदमी उस को सही कहते हो ,हा ये गलत बात सही होने का भ्रम तो हो सकती है लेकिन सही कभी भी नही हो सकती भले ही सौ की जगह हजार लोगो ने भी क्यो ना कही हो | और गलत बात का प्रतीकार भी करना चाहिए | ये सही है की इस बलोग जगत मे समझदार लोगो की संख्या ज्यादा है और वे लोग अपनी ऊर्जा इन फालतू लोगो के लिए नही खर्च करना चाहते है | लेकिन जब पानी सर से ज्यादा जाने लगे तो लिखना भी जरूरी हो जाता है | अंतर सोहील जी आपका लिखना सार्थक है आभार |
अंतर सोहील जी आपका लिखना सार्थक है
ReplyDeleteअन्तर भाई आप की बात से सहमत हुं, लेकिन क्या किया जाये एक आदमी खुद नंगा हे, अब उस से क्या बहस कि जाये, उस के संग हम तो नंगे नही हो सकते, इस लिये उसे इंगनोर ही कर दो अच्छा हे,ऎसे लोग अपने घरो मे भी बिलकुल खुश नही रहते, अडोसी पडोसी भी इन से दुखी ही रहते हे, इन्हे दुनिया को सुखी देख कर हंसते खेलते देख कर चेन नही मिलता,क्योकि इन के लिये पुरी दुनिया बेवकुफ़ो की हे, ओर सिर्फ़ यही समझदार हे, खुद अधनंगे रहे,जो चाहे करे लेकिन जहां चार यार प्यार से मिल बेठे इन्हे उन की खुशी से जलन होती हे, अजी जलने दो, हमारी कोन सी गेस जलती हे,हम तो युही मजा लेगे,लेकिन इन्हे घास तक नही डाले गे जी... अगली बार तीन नही तीस यार मिल बेठेगे, अब इन्हे कोई पुछता नही तो यह खुद पंगा लेते हे अपनी तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये,ओर हम थू भी नही करते जी देखना तो दुर की बात हे.... धन्यवाद इस अति खुबसुरत ओर मस्त रचना के लिये.
ReplyDeleteकूल कूल कूल
ReplyDeleteआप नंगों को उघाडने चले हैं?
मैं दारू-वारू नहीं पीता पर मुझे तो पोस्ट पढ़ कर कुछ बुरा नहीं लगा.
ReplyDeleteबाक़ी... गुणी लोगों की अपनी मर्ज़ी.
शांत गदाधारी भीम शांत:)
ReplyDeleteएक अच्छा लेख लिखने के लिए शुभकामनायें ! जब तक आपको अपनी अच्छाइयों पर भरोसा है परवाह न करें ! शर्मिंदगी सिर्फ तब होनी चाहिए जब हम अपनी निगाह में गिरते हैं !
ReplyDeleteरेखा की मदद के बारे में जानकार अच्छा लगा ! बधाई आप लोगों को !