सब से पहले चित्र मै मिठाई भगवान के चरणो मै रखी है,फ़िर घर के सभी सदस्य मिल कर बेठ गये ओर आरती शुरु कर दी, फ़िर देखे हमारी आरती की थाली, मिट्टी के दिये ओर उन मै शुद्ध सरसॊं का तेल( यह मै भारत से लाया हुं)
ओर सब से अंत मै बच्चे ओर बीबी पूजा करते हुये, मै चित्र खींच रहा हुं, ओर मेरे साथ मेरा हेरी भी खडा है, उसे इस दिन बहुत मजा आता है, क्योकि उसे भी इस दिन मिठाई जो मिलती है... मां ओर पिता जी की बहुत याद आई, क्योकि इस दिन मां ओर पिता जी फ़ोन जरुर करते थे,ओर मां ने कहा था कि कुछ भी हो शगन जरुर करना सब त्योहरो का, जिस से हमे भी खुशी होगी,आप सुनाये आप ने केसे मनाई दिपावली
हमने तो दिवाली घर से बाहर होने के कारण महानगरी स्वरुप में मनायी | आप को ढ़ेरों शुभकामनाये |
ReplyDeleteहमने ऑर्कुट पर आपको दिवाली मनाते देख लिया था. :)
ReplyDeleteयहीं दीवाली का सच्चा स्वरूप है.
ReplyDeleteआप ने दीवाली बहुत अच्छी तरह मनाई। हम ने भी अपने यहाँ दीवाली मनाई है। फिर कभी फुरसत में बताएँगे।
ReplyDeleteराज जी,
ReplyDeleteइन संस्कारों से ही तो भारत की दुनिया भर में पहचान है...विदेश में भी पूरे रीति-रिवाज के साथ त्यौहार मनाना उन सबके लिए सबक है जो पैसे के पीछे रोबोट बने घूम रहे हैं और अपनी पहचान को ही खोते जा रहे हैं...
जय हिंद...
khushee huee aapke ghar ki puja aarti dekh ker
ReplyDeleteaur mithayi bhee badhiya lagee :)
Humaree Deepawali ki baat fir batayenge
कैमरे को आप आटो मोड मे लगा देते तो आपको भी हम पूजा करते देख लेते ।
ReplyDeleteआपकी पूजा तो आदर्श रही फिर शिकायत जैसी क्या बात???????????
ReplyDeleteआप भाग्यशाली हैं कि आपको सबका सहयोग मिला दीपावली को आदर्श रूप में मानाने का........
चित्रमय बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
दीपावली और भाई-दूज पर आपको और आपके परिवार को अनंत हार्दिक शुभकामनाएं.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
एक प्रश्न सभी से - हम सब राम का स्मरण करते हुए दीवाली मनाते हैं लेकिन दीवाली के दिन राम का पूजन कोई नहीं करता, बस सब लक्ष्मी का ही पूजन करते हैं। आखिर ऐसा क्यूं?
ReplyDeleteचित्रमय बढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteशरद कोकास जी ठीक कह रहे।
बी एस पाबला
बस ऐसे ही हमने भी दीवाली मनाई.
ReplyDeleteआप की चित्रमय प्रस्तुति पसंद आई.
अपने घर की और अपने देश की तो त्योहारों पर बहुत याद आती ही है.
वो रौनक और मज़ा त्योहारों का यहाँ कहाँ?
घर से दूर हूँ .. और घर वालों की कमी को बाकायदा महसूस कर सकता हूँ ,.. आपके रचना की आखरी दो लाइन ने आँखें भिगो दिए .. दिवाली की ढेरो बधाई
ReplyDeleteअर्श
bas aapne stuti ko ulta banaya hai yah khayaal rahe ....
ReplyDeletearsh
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteडा. अजीत गुप्ता जी की बात से सहमत हूँ । हम तो राम जी को भी याद करते हैं । आपकी दीवाली अच्छी लगी शुभकामनायें इसी तरह साल दर साल मनाये रहें
ReplyDeleteचित्र तो स्पष्ट बता रहे हैं कि आपने दीपावली बहुत अच्छे से मनाई....
ReplyDeleteलेकिन पूजा की थाली में आपने जो "स्वस्तिक" बनाया है,वो गलत है । वो स्वस्तिक नहीं बल्कि हिटलर की खतरनाक नाजी पार्टी का चिन्ह है ।
आपके वाले लिंक पर जाकर ये वाला मैसेज आ रहा है "आप को यह संसाधन देखने कि अनुमति नहीं है।
ReplyDeleteकृपया लॉग इन करें "
नैट पर एक नहीं बल्कि सैंकडों,हजारों जगह यही गलती देखने को मिल रही है ।
यहाँ मैं आपके लिए 2 लिंक दे रहा हूँ:---
सही स्वास्तिक चिन्ह:- http://carlosquiles.com/indo-european-language-blog/wp-content/uploads/2007/08/hinduswastika.png
जर्मन नाजी चिन्ह :- http://i98.photobucket.com/albums/l280/kachina2012/SantaCantalinaSvastika.jpg
http://farm4.static.flickr.com/3131/3112016675_f0943273cc.jpg?v=0
http://media.photobucket.com/image/nazi%20symbol/Insho14/Winter%20Festivals%20and%20Hakkoda%20Ski%20Area/SSL23533.jpg
इस विषय में सही गलत के बारे में अधिकतर लोग भ्रमित हैं । बहुत जल्द एक पोस्ट के जरिए इसे स्पष्ट करने का प्रयास करूँगा...
शरद कोकास जी जगह कम थी, क्योकि यह मंदिर दिवार के साथ बना है, इस कारण केमरे को आटो पर कर भी देता तो भी चित्र पुरा नही आता,अजीत गुप्ता जी मै तो हमेशा दिल मे भगवान का धन्यवाद करता हुं, जब हम दिपावली की पुजा करते है तो सब को तो पता ही है कि आज राम चंद्र जी वनबास से लोटे थे, तो मेरे ख्याल मै लोग राम चंद्र जी की ही पुजा करते होगे, मै तो भगवान राम चंद्र जी की ही पुजा करता हुं , बाकी अन्य लोगो का पता नही, लेकिन आप का प्रशन बहुत अच्छा लगा,
ReplyDeleteवत्स जी आप ने भी जो बात बताई मेने फ़िर से उसे चेक किया, अब पता नही मै गलत हुं, आप इस लिंक पर जा कर देखे हिटलर के स्वस्तिक का निशान,भाई हम ठहरे आम आदमी , ओर गलती भी हो सकती है,हम ने तो मन से पुजा करी है, अब गलती भगवान माफ़ करेगे.अर्श जी इस दिन जब तक मां ओर पिता जी का फ़ोन नही आता था, सब सूना सूना लगता था, ओर मां बाप का फ़ोन जन्म दिन ओर त्योहार पर जरुर आता था...
आप सभी का धन्यवाद
स्वस्तिक यहां देख सकते है वत्स जी
ReplyDeleteभाटिया साहब,
ReplyDeleteदीवाली मनाने का सुरुआती दौर तो सच में आपके घर से एकदम मिलता-जुलता ही था, मगर आरती ख़त्म होने के बाद बच्चे बाहर दोस्तों के साथ पटाखे फोड़ने में मशगूल हो गए ( हालांकि इस बार बहुत कम पठाखे उन्होंने जलाए ) श्रीमतीजी बाहर गेट पर. सीडियो पर, छत पर एवं तुलसी के गमले पर दीये सजाने में व्यस्त हुई तो हमें मौका मिल गया और कसम से कुछ ही देर बाद मुझे तो हर चीज़ दो नजर आने लगी ! :-)
दिपावली तो ताउ के सग म्ना आया जी
ReplyDeleteबहुत बधाई जी दिपावली की. बहुत अच्छा लगा परंपरागत तरीके से दिवाली मनाते देखकर.
ReplyDeleteरामराम.
आपकी यह सचित्र प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी और अन्तिम पंक्तियां तो दिल को छू गई माता-पिता की बातें एवं उनकी याद हमेशा ऐसे अवसरों पर आंखे भिगा जाती है ।
ReplyDeleteबहुत अच्छे से मनाई जी आपने दिवाली ...माता पिता की याद हमेशा साथ ही है
ReplyDeleteaapne bahut achhe se deepavali mnai is bar hmari deepavli bhut vishesh thi kyoki mera pota jo abhi matr do mheene ka hai uske sath phli deevali thi
ReplyDeleteto pooja se jyada us par dhyan tha baki deepavali bhut achhe se mani
aapki prstuti achhi lgi