8/6/10
फत्तू के कुंवारा रहने का कारण ताऊ जी और राज जी
कल की पोस्ट वो मुलतानी मिट्टी से तख्ती को पोतना पर
श्री राज भाटिया जी ने कहा - "अमित भाई बहुत सुंदर यादे याद दिला दी आप ने. लेकिन आप तो हम से काफ़ी बाद आये ओर यादे सारी हमारे वाली ही है, तख्ती का एक ओर भी लाभ था... कभी कभी उस से धुनाई भी करते ओर करवाते थे, आज तो कई बार पढी आप की पोस्ट. धन्यवाद "
आदरणीय राज भाटिया जी इसका मतलब है कि आपके पाठशाला के समय से मेरे समय यानि 1982-90 तक वही जमाना रहा। मैनें इन सबका इस्तेमाल किया है। हम सरकारी स्कूल में पढते थे। हमतो अपने बस्ते के साथ बैठने के लिये आसन (सीमेंट का खाली बोरा/कट्टा) भी ले जाते थे। और सर्दियों में कम्बल ओढ कर बैठते थे। कभी-कभी छोटी सी अंगीठी बनाते थे। 2 kg. की डालडा की खाली कनस्तरी/लोहे की पीपी को काटकर। उसमें बीच में छेद करके साईकिल के पहिये की तार डालते थे और सिगडी तैयार। एक थैली में जली हुई लकडी के कच्चे कोयले और अंगीठी ले जाते और विद्यालय में अपने पास जलाकर बैठते थे।
श्री ताऊ रामपुरिया जी ने कहा - "बहुत सही लिखा आपने. हमने और भाटिया जी ने तो इस तख्ती से कईयों के सर फ़ोडे थे. लठ्ठ से भी ज्यादा कारगर हथियार था. एक बार एक बडी क्लास के लडके से झगडा होगया. झगडे में सामने वाला ज्यादा ज्यादा तगडा था. भाटिया जी तख्ती लेके उस पर पिल पडे पर वो काबू में नही आरहा था. मैने अपना होल्डर बस्ते (स्कूल बैग कपडे वाला) से निकाला और उसकी निब की तरफ़ से उस छोरे के दे मारा...और आगे क्या हुआ होगा? ये बताने की नही सोचने की बात है...हमने तो इन सब चीजों का उपयोग हथियार के बतौर ही किया, बजाय लिखने पढने के. रामराम"
ओह! तो वो आप दोनों थे। फत्तू चौधरी कई बार जब अपने बचपन के किस्से सुनाया करै तो इस बात का जिक्रा भी जरूर करा करै। ताऊ जी वा निब उसकी नाक म्है घुसगी थी और आज भी नाक पै छेद है अर जित उसके सिर पै राजजी की तख्ती लागी थी उडै तै टांट (सिर) आज भी गंजा है। :-)
आप दोनों की वजह से बेचारे का ब्याह भी ना होया। ये निशान देखकै कोये भी छोरी फत्तू तै ब्याह करण नै राजी ना होई।
उपरोक्त पंक्तियां हल्के-फुल्के मूढ में मजाकिया तौर पर लिखी गई हैं। अगर आपको बुरा लगा है तो क्षमायाचना सहित हटा दी जायेंगीं।
नाम
Antar Sohil,
अन्तर सोहिल
10 comments:
नमस्कार, आप सब का स्वागत है। एक सूचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हैं, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी है तो मॉडरेशन चालू हे, और इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा। नयी पोस्ट पर कोई मॉडरेशन नही है। आप का धन्यवाद, टिपण्णी देने के लिये****हुरा हुरा.... आज कल माडरेशन नही हे******
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अरे इस लिए वो पुलिस वाला आपको और ताऊ को अभी तक खोज रहा है |
ReplyDeleteताऊ और भाटिया जी से यही अपेक्षित था !हा-हा-हा-हा खाम-खा बेचारे फत्तू की टांड फोड़े दी !
ReplyDeleteबेचारा फत्तू !!
ReplyDeleteताऊ को तो कभी देखा नहीं , लेकिन भाटिया जी से ऐसी उम्मीद नहीं ओ सकती ।
ReplyDeleteखैर फत्तू तो खामख्वाह पिट ग्या बेचारा ।
अरे भाई यो जाणकै बडा अफ़्सोस हुया कि फ़त्तू बिचारा कंवारा रह गया? पर इब के किया जा सकै सै? ताऊ और भाटिया जी से पंगा लेण की सजा तो मिअल्णी ही थी.
ReplyDeleteरामराम
अमित जी , जो हम से पीट गया उसे शादी करनी ही नही चाहिये, क्योकि हम ही इकलोते है जो हमेशा पिटते है.... एक बार बचपन मै एक बालक को पीटा वो आज विधायक बने फ़िरते है.....
ReplyDeleteलेकिन बहुत सुंदर लिखा, पढ कर मजा आ गया, अब फ़त्तू के लिये कोई गोरी ढुडते है.... बेचारे के हाथ पेर पीले हो जाये.
राम राम
आपने बहुत ही बढ़िया पोस्ट लिखी है!
ReplyDelete--
इसकी चर्चा तो चर्चा मंच पर भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/238.html
उफ़्फ़... कहां-कहां घसीट कर ले जाते हो बचपन में ...simply nostalgic
ReplyDeleteतभी इन दोनों को कोई काम नहीं मिला आजतक ! राज भाटिया "पराये देश" में "छोटी छोटी बातें" सुनकर "मुझे शिकायत है" लेकर बैठे रहते हैं और ताऊ मदारी हैं वह तो शुक्र करो कि जमूरों कि लोकप्रियता से दूकान चल निकली और नकली मिलावटी तेल और फर्जी दवाएं बेचते रहते हैं !
ReplyDeleteसो लोगों को सरे आम बेवकूफ बना कर किसी तरह गुज़ारा चल जाता है...
आप इनसे सावधान रहना ...
मजेदार हा हा ..... बेचारा फत्तू...
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